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________________ और रचनाएँ लिपिबद्ध होने लगी। उनकी अनुमति लिए बिना ही महेन्द्रगढ़ के लाला जवाहर प्रसाद जी ने गीतों की पुस्तक प्रकाशित की सं० १९८६ । फिर तो प्रकाशन का सिलसिला चालु हो गया। जिसको जो रचना प्राप्त हुई उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित की। अजमेर सादडी, सोजत, भीनासर, बीकानेर के साधु सस्मेलनों में गुरुदेव के गीत समूह गान में गाये जाने लगे। उस जमाने में पूज्य आत्माराम जी महाराज पूज्य अमोलक चन्द जी महाराज और पूज्य जवाहरलालजी महाराज ने इन भजनों की खुब प्रशंसा की थी इस छोटे उम्र में हजारों भजन बनाये और पूज्य जवाहर लालजी महाराज तो अपने व्याख्यान में भजन गाते थे। विशेष राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति ने गुरुदेव को अपने भवन में आमंत्रण किया महात्मा गाँधी के साथ तो खूब चर्चा प्रश्न उत्तर होते थे। · श्रीमती इन्दिरागाँधी ने स्वर्ण जयन्ती दीक्षा के दिन दिल्ली में हजारों लोगों के सामने चादर भेंट की श्री मुरारजी भाई देशाई वीरायतन में आकर गुरुदेव से भेंट की विशेष आजादी के आन्दोलन में आन्दोलनकारी बड़े भारी उत्साह से गीत गाते थे। परिणाम आया कि एक तरफ तत्कालिन पटियाला सरकार ने उनकी पुस्तक जब्त करवा दी, तो दूसरी तरफ "अमर मुनिजी महाराज" इस प्रिय नाम के साथ-साथ जनता का दिया गया नाम "कविजी महाराज" लोकप्रियता पा गया। तबसे वे "कविजी महाराज" इस (ख) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibr
SR No.001377
Book TitleBhavanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year1996
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size4 MB
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