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- [ २३ ] पुष्प फलान्वित हरे वृक्ष पर, रहते खग परिवार शुष्क हुए सब चले छोड़ कर, करी न ढील लगार ॥३ सूरी कान्ता ने निज पति को, दे विष का आहार स्वार्थ सिद्धि बिन देखो कैसा, कर दिया अत्याचार ।।४ कौणिक और औरंगजेब ने, किया न सोच विचार
स्वार्थ मग्न हो अपने पितु को, दिया कैद में डार ॥५ 'पृथ्वीचन्द्र' गुरु वचनामृत को, हृदय सदन में धार शहर भिवानी बीच 'अमर' कहें, करलो भव्य सुधार ॥६
इति.
क्षण भंगुरता भीम जैसे बली फेंके ..
नभ में गजेन्द्र बृन्द. .. पार्थ जैसे लक्षवेधी कीर्ति जग जानी है॥१ राम कृष्ण जैसे नर पुङ्गव जगत पति । रावण की दैत्यता भी किसी से न छानी है ।।२ काल के न आगे चली कुछ भी बहाना बाजी छिनक में छार हुए, रह गई कहानी है ॥३ तेरे जैसे कीटाकार, मूढ़ की विसात क्या है करले सुकृत चार दिन की जिन्दगानी है ॥४
इति.
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