SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राथमिक बिन्दु जैन संस्कृत-साहित्य के अन्तर्गत स्तोत्रों की परम्परा अत्यन्त समृद्ध रही है। सहस्रों विविध स्तोत्र हैं जिनके माध्यम से भक्त कवियों ने अपने-अपने आराध्य के प्रति श्रद्धाभाव अर्पित किये हैं। स्तोत्र, स्तुति साहित्य का ही एक अभिन्न अंग है। . कविवर्य श्री भागचन्द्र ‘भागेन्दु' कृत 'महावीराष्टक स्तोत्र' एक भावपूर्ण रचना है। इसकी लोकप्रियता इस कदर बढ़ी कि यह स्तोत्र अल्प समय में ही भक्तजनों के कण्ठ पर आरुढ़ हो गया। प्रस्तुत कृति 'महावीराष्टक-प्रवचन' इसी स्तोत्र की व्याख्याता, कृति है। प्रवचनकार हैं--परम श्रद्धेय उपाध्याय राष्ट्रसंत श्री अमरमुनि जी महाराज । श्रद्धेय गुरुदेव हृदय से कवि, बुद्धि से दार्शनिक और आचरण से साधक थे। कवि, दार्शनिक और संत के स्वरूप का त्रिवेणी संगम था उनमें । दूसरे शब्दों में वे हृदय से भक्तयोगी थे, बुद्धि से ज्ञान योगी और आचरण से कर्मयोगी थे। अर्थात् वे बुद्धिवादी थे, भक्तिवादी और ज्ञानवादी भी। तीनों योगों का उनमें समन्वय था। जैन परिभाषा में इसी को रत्नत्रयी कहा जाता है। बौद्ध परंपरा में इसी रत्नत्रयी को शील, समाधि और प्रज्ञा कहा गया है। गीता में इसी रत्नत्रयी को ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग कहा गया है। उपाध्याय श्री अमरमुनि जी महाराज अपने युग के महान् प्रवक्ता, लेखक, साधक थे। साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने धर्म, दर्शन, योग, तर्क आदि विषयों पर अनेक पुस्तकों का प्रणयन किया हैं। गुरुदेव की विशेषता थी कि वे अनेकांङ्गी रहे, एकाङ्गी कभी नहीं बने। अनेकान्त उनका ध्येय था, अहिंसा उनका आचरण था और स्याद्वाद उनकी भाषा थी। श्रद्धा और तर्क का समन्वय था उनकी साधना में। श्री महावीराष्टक स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक की परम श्रद्धेय गुरुदेव ने प्रवचनों के माध्यम से सुन्दर व सटीक व्याख्या की है। यह अनूठी कृति है। ये हृदयस्पर्शी प्रवचन गुरुदेव ने वीरायतन में दिये थे। (vi) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001376
Book TitleMahavirashtak Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy