SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० | महावीराष्टक-प्रवचन की उद्दामता का पर्याय है। उसे तो शान्त रहना है। लहरें स्वत: शान्त हो जाएँगी, विलीन हो जाएंगी। लहरों के उठते-उछलते, विलीन होते हुए देखना है। चेतना के सागर में जिसे सेना-सेनापति कह रहा हूँ उठे हैं, आंधी-तूफान की तरह उठे आ रहे हैं। आक्रामक हैं, भयंकर शक्ति है उनको। मैं तो क्या, कोई अन्य भी टकराएगा तो समाप्त हो जाएगा। यः मुझ टकराना नहीं। उनको आते हए. धैर्य के साथ, मौन भाव से, अभय भाव निष्काम भाव में देखना है। विलीन होते हुए भी उसी भाव में देखना है। शब्दातीत भावस्थिति अनन्त आनन्द का प्रशान्त सागर है। वर्षों बीत गए। यही चलता रहा। महावीर ने हार न मानी। शब्द नहीं हैं उस भाव-स्थिति के लिए। यह तो हल्की-सी झाँकी है। और ऐसा ही कुछ हुआ। काम-क्रोधादि सुभट त्रिभुवनजयी महान् योद्धाओं ने हार कर अपने अस्तित्व को खो दिया, विलीन कर दिया। विजयी वीर महावीर ने कैवल्य पा लिया। और जगत् के प्रति जीवन में गारते हुए लोगों के प्रति करुणा से भर गए। विजय का संदेश, आत्मविजय का संदेश प्रदान करते रहे। प्राणों में शक्ति भरते रहे। कोई शस्त्र नहीं, कोई आक्रमण नहीं, आक्रमण से बचने के लिए प्रत्याक्रमण भी नहीं। ऐसा मार्ग, ऐसा उपाय देते रहे। भागेन्दु ने महाप्रभु के दर्शन में विजय का दर्शन पाया। प्रभु से प्रार्थना की : अनिरौद्रेकस् त्रिभुवनजयी काम-सुभटः कुमारावस्थायामपि निजबलाद्येन विजितः । स्फुरन्नित्यानन्द-प्रशमपदराज्याय स जिना, महावीर स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ॥ ७ ॥ कामादि योद्धा सबसे युद्ध करते रहते हैं और जीत इनकी ही होती हैं। ये तो त्रिभुवनजयी हैं। किन्तु प्रभु, तुमने तो युवावस्था में, जो निश्चित रूप से हार जाने की अवस्था है उसमें, कामदेव को पराजित किया। नित्यानन्द स्वरूप को पा लिया। ऐसे देवाधिदेव, जिनेश्वरदेव प्रभु महावीर मेरी आँखों में समा जाएं। * ** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001376
Book TitleMahavirashtak Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy