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१२ | महावीराष्टक-प्रवचन
बिना किसी लागलपेट के जितनी स्पष्टता से साधारण व्यक्ति को जीवन की यथास्थिति का दिग्दर्शन भगवान महावीर कराते हैं और साथ ही उतनी स्पष्टता से श्रेष्ठजनों को भी कराते हैं महावीर । रंग-शून्यता
जितने प्रेम एवं आत्मीयता से भाग्यशाली महाराज्ञों से बात करते हैं, उतने ही प्रेम, उतनी ही आत्मीयता से तुच्छ एवं साधारण व्यक्ति के साथ महावीर बात करते हैं। न किसी के राजा होने का रंग उनके लिए अर्थ रखता है, न किसी के रंक होने का, न किसी के पामर होने का, न किसी के पुण्यात्मा होने का, न किसी की श्रेष्ठ जाति, श्रेष्ठ वर्ग, श्रेष्ठ कुल, श्रेष्ठ भाग्य होने का रंग, न ही किसी के नीच जाति, क्षुद्र वर्ण, नीच कुल, फूटे भाग्य होने का रंग, न किसी के अमीर होने का
और न किसी के गरीब होने का रंग, न किसी के विद्वान होने का और न ही किसी के मढ़ होने का रंग, न किसी से सम्मानित होने का और न किसी से ठुकरा जाने का रंग। कोई भी रंग महावीर के लिए रंग नहीं है। तमाम रंगों की बदरंगी परतों के नीचे छुपे हुए जिनत्व की दिव्य आभा को महावीर देखते हैं। महावीर का जीवन-संदेश है-सारे रंग छूट जाएं, परम शुद्ध-विशुद्ध स्वरूप प्रकटे।
भागचंद्र की भक्ति में यही भाव भरा है कि भगवान महावीर मेरी आँखों में समा जाएं। इन बाह्य आँखों से जो रंगारंग संसार मैं देख रहा हूँ, जो बदरंग दृश्य हठात् मेरी आँखों के सामने आते हैं वे मुझ पर किसी प्रकार का रंग चढ़ाए बिना ओझल हो जाएं। मैं भी किसी प्रकार के रंग चढ़ाए बिना रंगशून्य हो जाऊँ। वीतराग भक्ति/परम विशुद्धावस्था मुझमें प्रगटे ।
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