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________________ . अनेकान्त है तीसरा नेत्र लिया। किन्तु क्या करूं, डाक्टर साहब ! कुत्ता नहीं जानता कि नौ बजे के बाद नहीं काटना चाहिए। सापेक्षता के बिना, सीमाबोध के बिना काटने की बात की जा सकती है, जोड़ने की बात नहीं की जा सकती। . इस दुनिया में कोई भी पूरा नहीं है, सब अधूरे हैं। कोई भी निरपेक्ष नहीं है सब सापेक्ष हैं। यह सामाजिक सन्दर्भ या सम्बन्ध की बात है। अस्तित्व के क्षेत्र में प्रत्येक पदार्थ पूर्ण है। जहां विस्तार होता है, जहां समाज बनता है, वहां सब सापेक्ष हैं, अधूरे हैं। इस विस्तार की दुनिया में यदि कोई व्यक्ति निरपेक्षता की बात करता है, निरपेक्षता के आधार पर निर्णय लेता है तो वह शत-प्रतिशत भ्रान्ति है, भूल है। वह धोखा है। अनेकान्त के अतिरिक्त ऐसा कोई भी सिद्धान्त नहीं है जो सापेक्षता का बोध करा सके। अनन्त पर्याय : अनन्त संभावनाएं प्रत्येक तत्त्व के अनन्त पर्याय होते हैं । किस समय कौन-सा पर्याय अभिव्यक्त हो, यह नहीं कहा जा सकता। डार्विन ने जिस दिन यह घोषणा की कि आदमी के भी पूंछ होती है और मनुष्य बन्दर की संतान है, उस दिन वह बात अजीब-सी लगी और धार्मिकों ने उसका उपहास किया। यह उपहास एकांगी दृष्टिकोण के कारण था। एंकागी दृष्टिकोण का अर्थ है-अनन्त संभावनाओं की समाप्ति । आदमी के पूंछ नहीं होती, इसे हम एकान्तत: नहीं कह सकते । जैन आगमों में प्रतिपादित है कि कुछ पुरुष (मनुष्य) “लांगूला” पूंछ वाले होते हैं। कुछ मनुष्य “घोटकमुखा"-घोड़े के मुंह वाले होते हैं । कुछ मनुष्य "हस्तिमुखा” हाथी के मुंह वाले होते हैं । अन्तरद्वीपवर्ती प्राणियों के विचित्र प्रकारों का उल्लेख प्राप्त है। इन्हें हम अस्वीकार कैसे करें? संभावनाओं को जहां हम अस्वीकार कर देते हैं, वहां कठिनाइयां उत्पन्न हो जाती हैं। ___नरसिंह" का प्रयोग भारतीय साहित्य में प्रचुरता से हुआ है। शरीर आदमी और मुंह सिंह का—यह है नरसिंह का स्वरूप। क्या यह संभव है ? हां ! ऐसा संभव है। संभावना को अस्वीकार कैसे करें? ऐसा भी आदमी जन्म ले सकता है जिसका शरीर मनुष्य का हो और मुंह सिंह का हो—नरसिंह । ऐसा भी जन्म हो सकता है जिसमें शरीर मनुष्य का हो और मुंह मछली का हो-मत्स्यावतार । ऐसा भी जन्म हो सकता है जिसमें शरीर मनुष्य का हो और मुंह वराह का हो—वराहावतार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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