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________________ स्वतंत्रता है। अरे, दुनियां में कोई अटल नहीं होता। जिसे हम परमात्मा कहते हैं, वह भी अटल नहीं है तो आदमी का निर्णय अटल कैसे हो सकता है ? निर्णय के घटक तत्त्व प्रत्येक निर्णय के चार घटक हैं—द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। इन चारों के आधार पर निर्णय बदलता रहता है। जो निर्णय इनके आधार पर नहीं बदलता, वह निर्णय नहीं, अनिर्णय होता है। अनेकान्त ने कहा, तुम कोई भी निर्णय द्रव्य, क्षेत्र, काल या भाव से निरपेक्ष होकर मत करो। यह कहो-यह निर्णय अमुक अमुक अपेक्षा से लिया जा रहा है। यदि अपेक्षा बदलेगी तो निर्णय भी बदल जायेगा। पहला निर्णय उस अपेक्षा से सही है और दूसरा निर्णय इस अपेक्षा से सही है। दोनों सही हैं, अपनी-अपनी अपेक्षा से । यदि वे निरपेक्ष होते तो असत्य हो जाते। वे सापेक्ष रह कर ही सत्य होते हैं । सापेक्ष निर्णय सच्चाई के क्षेत्र में प्रवेश है। एक व्यक्ति कहता है-दूध नहीं पीऊंगा। दस दिन बाद दूध पीना प्रारम्भ कर देता है। यदि कोई कहे, इस प्रकार निर्णय बदलने वाला गिरगिट होता है। यह निर्णय उचित नहीं है। दूध न पीने का निर्णय एक अवस्था में सही है और दूध पीने का निर्णय भी एक अवस्था में सही है। आंव की बीमारी में दूध जहर का काम करता है। आंव से पीड़ित व्यक्ति यदि ध न पीने का निर्णय करे तो वह सही है। बीमारी मिट गई। अब यदि वही आदमी पौष्टिकता के लिए दूध पीने का निर्णय करे तो वह भी उचित है। हम किसी भी निर्णय या निश्चय को निरपेक्ष रूप में स्वीकार नहीं कर सकते । हमारी दृष्टि स्पष्ट होनी चाहिये कि अनेकान्त भूलभूलैया नहीं है। यह न भटकाने वाला है और न उलझाने वाला। यह जीवन-व्यवहार की सारी समस्याओं का सहज-सरल ढंग से समाधान देने वाला मंत्र है । इसके आधार पर आदमी न धोखा खाता है और न कोई समस्याओं को पैदा करता है। सापेक्षता बहुत बड़ा समाधान है। जब सापेक्षता को भुला दिया जाता है तब संघर्ष होते हैं, युद्ध होते हैं। संघर्ष का कारण है-निरपेक्षता । संघर्ष का कारण है एकांगी दृष्टिकोण। संघर्ष का कारण है--सीमा का बोध न होना । सीमा का बोध आवश्यक है। एक रोगी ने डॉक्टर का दरवाजा खटखटाया। रात के बारह बजे थे। डॉक्टर नींद में था। खड़खड़ाहट सुनकर वह बाहर आया। रोगी ने कहा-डाक्टर ! कुत्ता काट गया है। डाक्टर ने कहा-मूर्ख हो । देखो, बोर्ड पर क्या लिखा है ? रात को नौ बजे के बाद मैं किसी रोगी को नहीं देखता । रोगी बोला—“बोर्ड पर मैंने पढ़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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