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________________ स्वतंत्रता के अधीन नहीं है, अस्वतंत्र नहीं है । दुनियां में कोई किसी के अधीन नहीं है। कोई किसी को अधीन करने वाला नहीं है। सब स्वतंत्र हैं। यह द्रव्य-सापेक्ष निर्णय है। एक निर्णय होता है--क्षेत्र-सापेक्ष । जो निर्णय क्षेत्र के आधार पर होता है, वह स्वतन्त्र भी हो सकता है, परतंत्र भी हो सकता है। आज हम इस क्षेत्र में हैं। यह हमारी क्षेत्र-सापेक्ष स्वतंत्रता है। हम एक ही क्षेत्र में दीर्घकाल तक नहीं रह सकते । क्षेत्र बदलता है। स्थान का परिवर्तन निश्चित होता है। इसके आधार पर किया जाने वाला निर्णय सापेक्ष ही होगा। काल-सापेक्ष निर्णय निश्चायक होता है - मनुष्य काल के साथ जुड़ा हआ है। पदार्थ काल के साथ जुड़ा हुआ है। स्वतंत्रता का निर्णय काल सापेक्ष होता है। वर्तमान-सापेक्ष निर्णय काल सापेक्ष है। बौद्धों के महान् आचार्य धर्मकीर्ति ने स्याद्वाद के सिद्धांत की मखौल करते हुए कहा-“स्याद्वाद निर्णय तक नहीं पहुंचाता । वह कहता है-यह भी हो सकता है, वह भी हो सकता है। अस्तित्व भी हो सकता है, नास्तित्व भी हो सकता है। तब हम क्यों न माने कि दही ऊंट हो सकता है और ऊंट दही हो सकता है।" यह तर्क सुनने में अच्छा लगता है कि यदि कोई भी पदार्थ सर्वथा परतंत्र नहीं है तो दही को ऊंट होने से या ऊंट को दही होने से कौन रोक सकता है ? ऊंट दही बन जाएगा और दही ऊंट बन जाएगा। यह तर्क एक बार सही-सा लगता है, किन्तु भ्रांत । यदि काल-सापेक्ष निर्णय लिया जाता तो स्याद्वाद को अनिश्चयचाक कहने का साहस नहीं होता। काल की सापेक्षता के आधार पर अनेकांत यह स्वीकार करता है कि दही ऊंट बन सकता है और ऊंट दही बन सकता है। तर्क होता है-कोई बीमार हो और उसके लिए दही आवश्यक हो तो यदि दही के बदले ऊंट लाकर खड़ा कर दिया जाए तो क्या स्थिति हो सकती है? इसी प्रकार यदि रेगिस्तान की यात्रा में प्रयुक्त ऊंट के बदले दही लाकर रख दिया जाए तो क्या स्थिति हो सकती है ? बड़ी गड़बड़ी हो जाएगी। हम वर्तमान की पर्याय को गौण नहीं कर सकते। अनेकांत कभी यह निर्णय नहीं देता कि दही सवारी के काम आ जाएगा, भार ढोने के लिए काम आ जाएगा। तथा ऊंट दही के स्थान पर खाने के लिए काम आ जाएगा। यह अनेकांत की कभी स्वीकृति नहीं हो सकती। अनेकांत कहता है कि वर्तमान पर्याय के आधार पर किया जाने वाला निर्णय वर्तमान के व्यवहार का संचालक होगा। वर्तमान का व्यवहार वर्तमान पर्याय के आधार पर चलेगा। दही दही रहेगी, ऊंट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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