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________________ अनेकान्त है तीसरा नेत्र है । इस प्रकार एक पूरी श्रृंखला है हमारे मानसिक तनावों की । जब काम की वृत्ति होती है तब पिच्यूटरी गोनाड्स को, कामग्रन्थि को प्रभावित करती है। जब क्रोध, भय आदि की प्रवृत्ति होती है, तब पिच्यूटरी एड्रीनल ग्रन्थि को प्रभावित करती है। इस प्रकार एक चक्र है पूरा भाव - संस्थान की सक्रियता मस्तिष्क को प्रभावित करती है । मस्तिष्क पिच्यूटरी को प्रभावित करता है । • पिच्यूटरी थायराइड, एड्रीनल और गोनाड्स को प्रभावित करती है । यह चक्र जब पूरा होता है तब अहंकार, भय, काम आदि की प्रवृत्ति होती है । ७६ पुरानी भाषा में जिसे आज्ञाचक्र कहा गया है वह आज के शरीर - शास्त्रीय भाषा में पिनियल और पिच्यूटरी कहा जा सकता है । इन दोनों ग्रंथियों का स्थान आज्ञाचक्र की सीमा में आता है। आज्ञाचक्र का स्थान भृकुटि बताया जाता है, पर यह पूरा सत्य नहीं है । भृकुटि पर जब हम अंगूठे के बीच का भाग रखते हैं और अंगूठे का अगला भाग जहां टिकता है, वह है आज्ञाचक्र का स्थान । तिलक का पूरा स्थान आज्ञाचक्र का स्थान है । इस सीमा में पिट्यूटरी और पिनियल - ये दोनों ग्रंथियां आ जाती हैं। दोनों का गहरा सम्बन्ध जुड़ जाता है । पिनियल बहुत ही रहस्यपूर्ण ग्रंथि है। प्रारम्भ में यह ग्रन्थि यौन को प्रभावित करने वाली होती है किन्तु बाद में पिनियल ग्रंथि अपना काम पिच्यूटरी पर डाल देती है और स्वयं उससे हट जाती है । पिच्यूटरी यह दायित्व संभाल लेती है । काम - विजय कैसे ? कोई आदमी ब्रह्मचारी होना चाहे, केवल प्रजनन संस्थान पर नियंत्रण करना चाहे तो यह कभी संभव नहीं होगा। नाभि से नीचे का जो स्थान है वह नियंत्रण का स्थान नहीं है । यदि सारा ध्यान प्रजनन संस्थान के नियन्त्रण पर ही दिया जाएगा तो सफलता नहीं मिल सकेगी । ब्रह्मचर्य की सफलता के लिए ध्यान केन्द्रित करना होता है कंठ के ऊपरी भाग पर । थायराइड, पिच्यूटरी और पिनियल की सीमा तथा हाइपोथेलेमस — इन चारों का ध्यान केन्द्रित करना होता है । जो व्यक्ति क्रोध, भय और काम-वासना आदि आवेशों पर नियंत्रण करना चाहे, उसे शरीर के ऊपरी भाग पर नियंत्रण करना होगा । नीचे के भाग पर नियंत्रण करने से आवेश नहीं मिटते । शिव ने तीसरे नेत्र द्वारा काम पर नियंत्रण किया— इस तथ्य का सरल समाधान मिल जाता है । जो व्यक्ति ध्यान के द्वारा आज्ञाचक्र को, दर्शनकेन्द्र को सक्रिय कर लेते हैं, पिट्यूटरी और पिनियल को सक्रिय कर देते हैं, वे कामभावना पर विजय पा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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