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________________ अनेकान्त है तीसरा नेत्र अनेकान्त है यथार्थ आंख एक भाई ने पूछा- “क्या पुनर्जन्म होता है ? क्या मृत्यु के पश्चात् आत्मा दूसरा जन्म लेती है ? क्या यह संभव है ?” मैंने कहा-नाश और उत्पत्ति को जानते हो तो पुनर्जन्म संभव है । यदि एक आंख खुली है और उत्पन्न होने को देखते हो, दूसरी आंख खुली है और मरने को देखते हो, दो आंखों से ही देखते हो तो पुनर्जन्म संभव ही नहीं, फिर क्यों हम चर्चा में जाएं? क्या प्रयोजन है चर्चा करने का? एक दिन कोई प्राणी जन्मा और हमारी आंख के सामने आया। हमने एक आंख से उसका जन्मना देखा। जब वह मरा, दूसरी आंख से उसे देखा । दो आंखों से हमने जन्मना और मरना देखा । जब इन दो आंखों से देखेंगे, तब पुनर्जन्म का प्रश्न ही नहीं होगा। यदि पुनर्जन्म के बारे में जानना है तो तीसरी आंख का विकास करना होगा। तीसरी आंख को खोजना होगा। अनेकान्त की दृष्टि का विकास करना होगा। अनेकान्त की आंख को खोलना होगा। धौव्य है तीसरी आंख उत्पादन और विनाश-ये दो तत्त्व हैं । तीसरा तत्त्व है-ध्रौव्य । ध्रुव का अर्थ है-अमर । जिसका कभी विनाश नहीं होता वह ध्रुव होता है । वह कभी समाप्त नहीं होता । धौव्य---यह तीसरी आंख है । इसको खोलना है । यह सच्चाई को देखने की आंख है। इसके खुलने पर पुनर्जन्म का प्रश्न सामने उपस्थित ही नहीं होता। आज का विज्ञान मानता है कि विश्व में जितने तत्व हैं, उतने ही रहेंगे। एक अणु भी नहीं बढ़ेगा और एक अणु भी कम नहीं होगा। केवल परिवर्तन या रूपान्तरण होता है। जैन दर्शन की मान्यता है-मूल तत्त्व जितने हैं उतने ही रहेंगे। न कोई नया पैदा होगा और न कोई पुराना सर्वथा नष्ट ही होगा। प्रश्न आत्मा के लिए ही क्यों? क्या परमाणु समाप्त होता है ? आंखों से ओझल हो गया और समाप्त हो गया-ऐसा मानने से अजीब स्थिति पैदा हो जाती है। पानी पीया। वह आंखों से ओझल हो गया। क्या वह समाप्त हो गया? यदि आंख से ओझल हो जाने का अर्थ ही समाप्त हो जाना है तो फिर आत्मा के लिए ही यह प्रश्न क्यों? परमाणु के लिए या बादलों के लिए यह प्रश्न क्यों नहीं उठता? कभी हम देखते हैं कि काले-कजरारे बादल आकाश में छा जाते हैं और कभी-कभी आकाश स्वच्छ और निर्मल हो जाता है। कहां गए बादल? क्या सारे बादल समाप्त हो गए? इस स्थिति में प्रकृति का प्रत्येक तत्त्व, प्रत्येक पदार्थ, प्रत्येक परमाणु समाप्त हो जाएगा। किन्तु जिसका अस्तित्व एक बार हमें ज्ञात हो गया, वह कभी समाप्त नहीं होगा। यह ध्रुवता की बात तब समझ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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