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________________ अनेकान्त है तीसरा नेत्र क्रोध की आदत बदल सकती है। तीसरी आंख न खुले तो क्रोध की आदत कभी नहीं बदल सकती। ___ क्रोध क्यों आता है ? यह एक प्रश्न है । परिस्थितिवादी कहेगा कि क्रोध की उत्पत्ति का हेतु है परिस्थिति । समाज में ऐसे कारण है, ऐसी परिस्थितियां हैं कि क्रोध आए बिना नहीं रह सकता। यदि परिस्थितियों के कारण ही क्रोध आए तो फिर क्रोध की आदत को बदलने की बात प्राप्त नहीं होती। पहले परिस्थितियों को समाप्त करना होगा। उसके समाप्त हो जाने पर क्रोध नहीं आएगा। न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी। समाज में न कभी परिस्थितियां समाप्त होंगी और न कभी क्रोध समाप्त होगा। इस दुनिया में कभी परिस्थितियां समाप्त होने वाली नहीं हैं। परिस्थितियों को समाप्त करने का विचार मूर्खतापूर्ण विचार है। एक परिस्थिति समाप्त होगी तो दूसरी पांच परिस्थितियां उभर आएंगी। एक समस्या सुलझेगी और पांच उलझ जाएंगी। परिस्थितियों का अन्त नहीं किया जा सकता । समस्याओं को समूल नहीं मिटाया जा सकता। ___ एक आन्दोलन चला-अधिक अन्न उपजाओ । खेतों में रासायनिक खाद दो, अन्न की उपज अधिक होगी। यह क्रम प्रारम्भ हआ। रासायनिक खाद से अन्न के तत्त्व समाप्त होने लगे। इससे अन्न में इतने विष घल जाते हैं कि कभी-कभी उस अन्न को खाने वाले मर जाते हैं। एक ओर प्रयत्न चलता है कि आबादी न बढ़े। एक ओर प्रयत्न चलता है औषधियों का कि मनुष्य को बचाया जा सके। एक ओर प्रयत्न चलता है रासायनिक खाद का कि जिससे बिना सोचे समझे, बिना बवंडर खड़ा किए आबादी कम हो जाए । बहुत सस्ता उपाय है आबादी कम करने का। जहरीली औषधियां, जहरीला भोजन और परिवार नियोजन-तीनों में मुझे कोई अन्तर नहीं दीखता। तीनों में एक ही बात है । राजनीति के लोग बड़े चतुर होते हैं। वे कहते हैं-सीधा मारने का उपाय मत करो, ऐसा उपाय करो, ऐसी दवा दो कि जिससे लेने वाले को मिठास आए और अपना काम भी बन जाए। परिस्थितियों का अन्त कभी नहीं होगा तो क्रोध भी कभी समाप्त नहीं होगा। तीसरी आंख के खुलने पर ही यह संभव है। तीसरी आंख है समता तीसरी आंख है-समता की। हमारे दो आंखें हैं। हमारी दायीं आंख है प्रियता की और बाईं आंख है अप्रियता की। Jain Education International For Private & Personal use only . www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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