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________________ सह-अस्तित्व जाए। एक दिन वह बाजार में गया और ऊपर की ओर देखने लगा। लोगों ने पूछा-ऊपर क्या देख रहे हो ! उसने कहा-देखो, भगवान के दर्शन हो रहे हैं। यह बात सारे नगर में फैल गई। लोग एकत्रित होने लगे। लोगों ने ऊपर देखकर पूछा-कहां है भगवान् ? हमें तो कुछ भी दिखाई नहीं देता। उसने कहा—'मुझे तो साक्षात् दर्शन हो रहा है। तुम्हें कैसे दर्शन हो? नाक सामने आ रही है। जब तक नाक की आड़ रहेगी, दर्शन नहीं होंगे। मेरी नाक नहीं है, कोई आड़ नहीं है, इसलिए साक्षात् दर्शन हो रहे हैं। लोग असमंजस में पड़ गए। एक ने कहा-नाक आड़े कैसे आ रही है? दूसरे ने कहा- तुम नहीं जानते। यह जो कह रहा वह सच है। भगवान के दर्शन करने हैं तो नाक कटा दो। दो ही क्षण में साक्षात् हो जाएगा। दुनियां में पागल लोगों की कमी नहीं है। समझदार हैं तो पागल भी होने जरूरी हैं। एक आदमी नाक काटने गया एक नाई के पास । नाई बोला-क्या पागल हो गए हो? नाक आंखों के आड़े कहां आती है? वह बोला-तुम नहीं जानते इस तथ्य को । पैसा लो और नाक काट डालो। मुझे भगवान के दर्शन करने ही हैं। नाई ने नाक काट दी। वह दौड़ा-दौड़ा उस नकटे के पास आकर बोला—कहां होते हैं दर्शन? उसने कहा-ऊपर देखो। उसने ऊपर देखा। कहां थे भगवान् । वह बोला-दर्शन नहीं हो रहे हैं। नकटे ने कहा—'चुप रहो बोलो मत, कहो कि दर्शन हो रहे हैं। यदि ऐसा नहीं कहोगे तो तुम भी अमंगल माने जाओगे । तुम्हारा कोई सम्मान नहीं होगा। दुत्कारे जाओगे। तुम यदि कहोगे कि नाक के कटवाने से भगवान् के दर्शन हो रहे हैं, तो हजारों आदमी अपनी नाक कटाएंगे और हमारी पंक्ति में आ जाएंगे।' वह रहस्य को समझ गया। जोर से बोल उठा-ओह ! क्या सुन्दर दृश्य है। साक्षात् भगवान् दीख रहे हैं। वह नाचने लगा। अब एक से दो हो गए। देखते-देखते हजारों लोगों ने अपनी नाक कटा ली। सह-अस्तित्व की खोज यह संसार ही ऐसा है। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह जैसा बोलता है, सब वैसे ही बोलें। वह जैसे चलता है, सब वैसे ही चलें। वह जैसे कपड़े पहनता है सब वैसे ही कपड़े पहनें। वह जैसा आचरण या व्यवहार करता है, सब वैसा ही आचरण या व्यवहार करें। यह चाह सबकी होती है । पर ऐसा होता नहीं। विरोधी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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