________________ अनेकान्त का एक सूत्र है - सह-प्रतिपक्ष। केवल युगल ही पर्याप्त नहीं है, विरोधी युगल होना चाहिए। समूची प्रकृति में, समूची व्यवस्था में विरोधी युगलों का अस्तित्व है। ज्ञान है तो अज्ञान भी है। दर्शन है, अदर्शन है। सुख है, दुःख है। मूर्छा है, जागरण है। जीवन है, मृत्यु है। शुभ है, अशुभ है। ऊँचा है, नीचा है। अन्तराय है, निरन्तराय है। शक्ति का विघ्न है, शक्ति की जागृति है। कर्मशास्त्रीय व्याख्या में विरोधी युगल है। हमारा जीवन विरोधी युगलों के आधार पर चलता है। यदि विरोधी युगल समाप्त हो जाएं तो जीवन भी समाप्त हो जाए। हठयोग के आधार पर जीवन की व्याख्या है - प्राण और अपान का योग। प्राणधारा के पांच प्रकार हैं। उनमें एक है प्राण और एक है अपान। प्राण ऊपर से नीचे जाता है, नाभि तक उसके स्पन्दन जाते हैं। अपान नीचे से नाभि तक आता है। जब तक ये विरोधी दिशाएं बनी रहती हैं, यह विपरीत दिशागामित्व बना रहता है - अपान का नीचे से ऊपर आना और प्राण का ऊपर से नीचे जाना - तब तक जीवन है। जब यह क्रम टूट जाता है तब जीवन टूट जाता है। जीवन का टूट जाना या मृत्यु का घटित हो जाना - इसका अर्थ है प्राण और अपान का बाहर निकल जाना। जब विरोधी दिशाएं या विपरीत दिशागामित्व सिमट जाता है तब जीवन समाप्त हो जाता है। - आचार्य महाप्रज्ञ (2) जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज0) JainEdical www.jainelibrary.org