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आशावादी दृष्टिकोण
की आकांक्षाएं आपत्तिजनक होती हैं, गड़बड़ियां पैदा करने वाली होती हैं । प्रधानमंत्री पद की चाह करो तो पहला व्यक्ति जो कुर्सी पर बैठा हुआ है वह यह सोचेगा कि सबसे पहले उसे समाप्त करो जो प्रधानमंत्री पद की चाह करता है । क्योंकि वह उसका प्रतिद्वन्दी बन जाता है। जितने पद हैं उन सब में संघर्ष है, सब में द्वन्द्व हैं । इन छोटे पदों में रहने वाले सदा सोचते हैं - वह दूसरा पद पर आ न जाए। मेरी कुर्सी छीन न ले । किन्तु परमात्मा का पद बहुत विराट् और विशाल है । कोई भी इस पद को पाना चाहे, किसी को कोई आपत्ति नहीं होती, किसी को स्पर्द्धा नहीं होती, कोई संघर्ष नहीं होता ।
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परमात्मा बनने का मार्ग, बहुत साफ है । इतना विशाल मार्ग है कि जिसमें सब छोटे मार्ग समा जाते हैं, सब समाप्त हो जाते हैं। वह अनन्त है और अनन्त है उसकी यात्रा । क्या यह दृष्टिकोण निराशावादी दृष्टिकोण है ? कभी नहीं। कैसे माना जाये इसे निराशावादी दृष्टिकोण ? यह परम - परम आशावादी दृष्टिकोण है ।
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आचार्य उमास्वामी तत्वार्थ सूत्र के कर्त्ता, प्रसिद्ध ग्रंथकार और सूत्रकार थे उनके सामने एक शिष्य आकर बोला- गुरुदेव ! इस संसार में ऐसा निर्बाध तत्व क्या है, जिसकी भावना सब लोग कर सकें? उन्होंने कहा - सुख । शिष्य ने पूछाकैसा सुख ? आचार्य बोले - मोक्ष सुख । शिष्य बोला - भन्ते ? वह सुख कैसे उपलब्ध हो सकता है? आचार्य ने कहा— उसकी प्राप्ति का एक मात्र उपाय हैसम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चरित्र का अनुशीलन ।
इस उपाय में किसी को आपत्ति नहीं है । इस मार्ग में किसी को आपत्ति नहीं है । इस परमसुख में किसी को आपत्ति नहीं है । यह अनन्त सुख, निर्बाध सुख, यह शांति का मार्ग कभी निराशावादी दृष्टिकोण नहीं हो सकता । यह आशा का इतना बड़ा दृष्टिकोण है कि वह आशा कभी समाप्त नहीं होती । वह अनन्त होती है और अनन्त में ही बदल जाती है। उसका कभी अन्त नहीं होता ।
अध्यात्म का मार्ग, साधना और ध्यान का मार्ग कभी निराशावाद का मार्ग नहीं हो सकता। इस मार्ग में निराश व्यक्ति नहीं आते किन्तु वे व्यक्ति आते हैं जो पदार्थ का भोग करते-करते अशांति की आग में झुलस गए हैं। उन्हें शान्ति का उपाय उपलब्ध नहीं है । वे इस रास्ते की खोज में निकलते हैं। इस रास्ते की खोज उन्हीं लोगों ने की है जो पदार्थ का भोग करते-करते इतने अशांत बन गये कि चन्दन का लेप भी उन्हें शांत नहीं बना सकता, शीतलता नहीं दे सकता । इतनी महाज्वाला प्रज्ज्वलित हो गई कि सागर का पानी भी उसे बुझा नहीं सकता । ऐसी स्थिति में
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