SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आशावादी दृष्टिकोण दो पक्ष समय का रथ अबाध गति से चल रहा है। इसके दो पक्ष हैं—एक है दिन और दूसरा है रात । जीवन का रथ भी निरन्तर गतिशील है। उसके दो चक्र हैंएक है आशा और दूसरा है निराशा। दिन प्रकाश है और रात अन्धकार । आशा प्रकाश है और निराशा सघन अन्धकार । पश्चिम के दार्शनिकों ने भारतीय दर्शन पर यह आरोप लगाया कि भारतीय दर्शन निराशावादी दर्शन है । वह दुःख को ही देखता है, दुःख ही दुःख । जन्म दुःख है, मरण दुःख है, रोग दुःख है, बुढ़ापा दुःख है-सर्वत्र दुःख ही दुःख है । वह दुःख से डरता है और निराशा का दृष्टिकोण अपनाकर वैसी ही प्रक्रिया को खोजता है। संयम करो, अपरिग्रह करो, त्याग करो -ये सब निराशावादी दृष्टिकोण की प्रक्रियाएं हैं । आशावादी पदार्थों का विकास करेगा, जीवन को आनन्दमय बनाएगा, समृद्धि और सम्पदाओं का विकास करेगा। वह छोड़ने की या त्याग की बात को प्रश्रय नहीं देगा । वह कहेगा-नया निर्माण करो, नया विकास करो, नई सृष्टि करो, नई दृष्टि से प्रस्थान करो, सदा विकास की दिशा में यात्रा करो। उसकी यात्रा विकास की ओर होगी, ह्रास की ओर नहीं। भारतीय दर्शन ने त्याग का महत्व बतलाया। परिणाम यह हुआ कि वह गरीब रह गया। भारतीय दर्शन ने अहिंसा का महत्व बतलाया। परिणाम यह आया कि वह समृद्धि की दौड़ में पीछे रह गया। इतिहास बतलाता है कि जब आक्रान्ताओं ने बन्दूक से लड़ाई लड़ी, तब भारतीय योद्धाओं ने तलवार से युद्ध किया। आक्रान्ताओं ने जब तोपों से लड़ाई लड़ी, तब भारतीय योद्धाओं ने बन्दूक से उनका सामना किया। वे विकास नहीं कर पाए। विकास इसलिए नहीं कर पाए कि उनका जीवन-दर्शन अहिंसा, अपरिग्रह, त्याग, संयम पर आधारित था। विकास नहीं कर सके। न परिग्रह का विकास, न सम्पदा का विकास और न पदार्थ का विकास । ये सब में पिछड़ गए। पदार्थ-विकास की ओर ध्यान क्यों नहीं? कुछ अंशों में इस कथन में सचाई हो सकती है । इसे हम आरोप ही न मानें । भारतीय लोगों ने पदार्थ के विकास की ओर उतना ध्यान ही नहीं दिया जितना आज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy