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________________ १३८ अनेकान्त है तीसरा नेत्र कौन दरवाजे तक पहुंचा और किसने चाबी लगा दी? किसके पास थी चाबी ? क्या कोई पहरेदार था मोक्ष के दरवाजे पर कि जब चाहा तब ताला लगा दिया और जब चाहा तब उसे खोल दिया। आचार्यश्री तुलसी ने एक बार कहा था कि जैनों ने मोक्ष की सम्भावनाओं को अस्वीकार कर धार्मिक जगत् को भौतिकवादी जैसा बना दिया। लोग आज मानकर बैठ गए हैं कि अवधिज्ञान या केवल ज्ञान नहीं हो सकता। मोक्ष नहीं हो सकता। इस मान्यता ने इनके खोज की जिज्ञासा ही समाप्त कर दी। एक बीमार आदमी यह मानकर बैठ जाए कि वह स्वस्थ होगा ही नहीं तो वह कभी स्वस्थ नहीं हो सकता। आग लग गई और कोई मान ले कि यह बझाई नहीं जा सकती, तो वह आग कभी नहीं बुझेगी। आदमी पानी या रेत लाने का प्रयत्न नहीं करेगा। एक मिथ्या मान्यता के कारण आदमी का सारा पुरुषार्थ, सारा प्रयत्न समाप्त हो जाता है। मोक्ष का दरवाजा खुला है या बन्द, ताला लगा है या नहीं लगा है, इसकी चिन्ता हम न करें। हम मानकर चलें कि आज भी मोक्ष उपलब्ध हो सकता है, केवलज्ञान और अवधिज्ञान उपलब्ध हो सकता है। जितनी संभावनाएं हैं वे सारी संभावनाएं आज फलित हो सकती हैं। आवश्यकता है केवल परम पुरुषार्थ और केवल परम प्रयत्न की । पुरुषार्थ हमारा कहां तक ले जाएगा उसकी चिन्ता न करें। परन्तु पुरुषार्थ में कभी कमी न आए। जब आदमी पहले चरण में ही निराशा से ग्रस्त हो जाता है, तब उसका दूसरा चरण उठता ही नहीं। वह अनेक समस्याओं से घिर जाता है। अपने अज्ञान, मिथ्या मान्यताओं तथा विचित्र धारणाओं के द्वारा व्यक्ति गलत निर्णय लेता है और समस्या के वात्याचक्र में फंस जाता है। भय के कारण भी ऐसा होता है। साधना में प्रवेश करता है किन्तु डरता है कि चल तो रहा हूं, न जाने क्या होगा? भय, प्रमाद, अज्ञान, आकांक्षा—ये सब साधना के विध हैं। ये हमारे पर्याय नहीं बदलने देते । जो पर्याय हम जीवन में लाना चाहते हैं, वह पर्याय इनके कारण नहीं आता। अनचाहे पर्याय प्रकट होने लगते हैं और इष्ट पर्याय नहीं होते । वे दूर चले जाते है। भय : महान् घातक भय के कारण न जाने कितने पर्याय बदल जाते है। प्लेग (महामारी) घोड़े पर चढ़कर जा रही थी। बीच में कन्फ्यूशियस मिला। उसने पूछा-'कहां जा रही हो?' प्लेग बोली- ‘सिंगाई नगर जा रही हूं।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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