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________________ परिवर्तन शाश्वत् है परिवर्तन ध्यान की साधना ज्योति की साधना है, प्रकाश की साधना है ! मनुष्य प्रकाश चाहता है। वह कभी अन्धकार नहीं चाहता। इसलिए वह प्रकाश की साधना करता है। वह चाहता है कि भीतर रहा हुआ तमस् भाग जाये। अन्धकार मिट जाये। जीवन में प्रकाश जैसे-जैसे उतरता है, वैसे-वैसे अन्धकार भाग जाता है। जीवन में प्रकाश होना भी संभव हैं और अन्धकार होना भी संभव है। दोनों संभव हैं। और इसलिए संभव है कि विश्व का सार्वभौम नियम है परिवर्तन । जैसे अपरिवर्तन एक शाश्वत नियम है, वैसे ही परिवर्तन भी शाश्वत नियम है। अनेकान्त की स्वीकृति : द्रव्य और पर्याय ___अनेकान्त ने तत्त्व की व्याख्या की । तत्त्व के दो पहलू हैं। एक है द्रव्य और दूसरा है पर्याय । द्रव्य मूल में होता है और पर्याय अपर होता है। परिवर्तन के बिना कोई अपरिवर्तनीय नहीं होता और अपरिवर्तन के बिना कोई परिवर्तन नहीं होता। परिवर्तन और अपरिवर्तन दोनों साथ-साथ चलते हैं। एक मूल में रहता है और एक फूल में रहता है । फूल हमें दिख जाता है । मूल गहरे में होता है । सामने नहीं दिखता कभी-कभी कुछेक लोग मूल को उखाड़ने का प्रयल करते हैं। वे परिवर्तन को स्वीकार करते हैं। मूल को अस्वीकार करते हैं। कभी-कभी कुछेक लोग मूल पर ही अपना सारा ध्यान केन्द्रित कर देते हैं और सामने दीखने वाले फूल को अस्वीकार कर देते हैं। यह एकांगी दृष्टिकोण है। ___अनेकान्त ने दोनों को स्वीकृति दी। मूल का भी मूल्य है और फूल का भी मूल्य है। मूल को अस्वीकार नहीं किया जा सकता और फूल को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता। कुछेक लोग फूल को नहीं, मूल को ही उखाड़ देते हैं। शहर के पास सुन्दर बगीचा था। उसमें एक स्थान पर लिखा था-फूल तोड़ना मना है। एक बालक आया। उसने मूल को ही उखाड़ना चाहा। माली ने देख लिया। वह दौड़ा-दौड़ा आया और बोला-अरे ! क्या कर रहे हो? देखो क्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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