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________________ १३० अनेकान्त है तीसरा नेत्र बक रहा था और मंत्री ने आपको कह दिया कि जो क्षमा करता है, वह प्रभु का प्यारा होता है । कितना झूठ ! सरासर झूठ । राजा बोला---मंत्रीवर ! उसका झूठ भी मुझे बहुत पसन्द आया तुम्हारी सच्चाई से। क्योंकि उसके झूठ में भी भलाई है और तुम्हारी सच्चाई में भी द्वेष झलक रहा है, ईर्ष्या झलक रही है। __बहुत बार ऐसा होता है। आदमी दूसरे को विघ्न में डालना चाहता है। वह दूसरे की भलाई नहीं चाहता । वह दूसरे को फंसाना चाहता है । यह फंसाने वाली बात सिद्धांत के क्षेत्र में भी चलती है, आचार और व्यवहार के क्षेत्र में भी चलती है। आदमी अपनी दुर्बलता को स्वीकार करना नहीं चाहता। वह उस दुर्बलता को सिद्धांत का रूप देकर प्रस्तुत करता है और ऐसा दिखावा करता है कि किसी को वह ज्ञात न हो कि यह उसकी दुर्बलता है। वह कहता है-यह बहत बड़ा सिद्धांत है। इसका पालन होने पर सारी गुत्थियां सुलझ जाएंगी। आदमी ऐसी बातों में उलझ जाता है । उलझाने वाली बात कभी-कभी सच भी लगती है। पर वह वास्तव में होती है झूठ । भगवान महावीर ने कहा- दूसरों को ताप पहुंचाने वाली, दूसरों का गला काटने वाली भाषा यदि सच है तो भी झूठ है, क्योंकि वह दूसरों का अहित करती है । वाणी अपने आप में सच या झूठ नहीं होती। किन्तु वाणी के पीछे जो प्राण की धारा प्रवाहित होती है, वह यदि मैली है तो वह वाणी सच्चाई को भी बिगाड़ देती है और उसे झूठ बना देती है। इन सारी समस्याओं को समझने के लिए, इनसे निपटने के लिए हमें अनेकान्त की दृष्टि और इससे फलित होने वाले संतुलन के सिद्धांत को जानना होगा, बुद्धिगम्य कर उसका व्यवहार भी करना होगा। ध्यान करने वाला प्रत्येक साधक अपनी दृष्टि को सन्तुलित बनाए, आचार और व्यवहार को सन्तुलित बनाए, प्रत्येक कर्म को संतुलित बनाए। जिस दिन सारे चैतन्य में यह सन्तुलन की घटना घटित होगी उस क्षण को मैं परमात्मा के साक्षात्कार का क्षण मानूंगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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