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________________ सन्तुलन १२९ मृत्यु से अभय कौन? मौत से हर व्यक्ति घबड़ाता है। उसका नाम सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं । किन्तु जिसने संयम को समझ लिया, जिसने समता को साध लिया, वह मौत के भय से बच जाता है । जो व्यक्ति समाधिमरण की तैयारी में लग जाते हैं, मौत को निमंत्रण देकर चलते हैं, वे मौत से कभी नहीं घबराते । वे मौत के सम्मुख जाते हैं, इससे घबड़ाते नहीं। यह संभव तभी होता है। जब वह जीवन और मृत्यु-इन दोनों सीमाओं से परे तीसरी सीमा में प्रवेश कर लेता है। यह स्वाभाविक है कि आदमी मरते-मरते भी जीवित रहना चाहता है। उसमें घनी जिजीविषा होती है। वह मरने से बहुत डरता है । कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो मौत को निमंत्रण देते हैं, मौत का आह्वान करते हैं और मौत का प्रसन्नता से वरण करते हैं। प्रश्न होता है कि चेतना का परिवर्तन कैसे होता है ? जब जीवन और मृत्यु की सीमा समाप्त हो जाती है वहां से समता और संयम की सीमा प्रारम्भ होती है। उस सीमा में चेतना बदल जाती है, चित्त बदल जाता है। अनेकान्त का फलित अनेकान्त से फलित होता है सन्तुलन । अनेकान्त से फलित होता है संयम। अनेकान्त से फलित होता है साम्य, समता का दृष्टिकोण। इससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि अनेकान्त कोरा तत्त्ववाद का प्रतिपादक नहीं है, यह जीवन का दर्शन है। अध्यात्म का पूरा व्यवहार, अध्यात्म का प्रत्येक उन्मेष अनेकान्त के साथ चलता है । अनेकान्त के बिना उसकी व्याख्या भी नहीं की जा सकती। उसकी साधना भी नहीं की जा सकती। लोग एकांगी दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। उससे बहुत भ्रम होता है। बहुत सारे लोग उसमें उलझ जाते हैं । इस दुनियां में सुलझाने वाले कम हैं, उलझाने वाले अधिक हैं। एक राजा ने एक बन्दी को मारने का आदेश दिया। बन्दी ने सोचा कि अब मरना ही है तो डरना क्या? वह राजा को गालियां देने लगा। राजा कुछ भी समझ नहीं सका। उसने मंत्री से पूछा--मंत्रीवर ! यह क्या कह रहा है ? मंत्री बोला-महाराज ! यह कह रहा है कि जो क्षमा करना जानता है, वह प्रभु का प्यारा होता है। राजा ने तत्काल कहा-अरे ! ऐसी बात है, तो इसे तत्काल मुक्त कर दो। एक दूसरा मंत्री भी वहीं बैठा था । वह पहले मंत्री से द्वेष रखता है, ईर्ष्या करता था। उसने कहा-राजन् ! इस मंत्री ने झूठ कहा है। यह बन्दी आपको गालियां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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