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________________ सापेक्ष मूल्यांकन ११५ नहीं किया जा सकता । व्यवहार को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। स्थूल पर्याय, वर्त्तमान पर्याय या व्यक्त पर्याय को कभी अस्वीकार नहीं किया जा सकता । सापेक्ष मूल्यांकन यह निश्चय और व्यवहार की सापेक्षता है । 'स्व' और 'पर' की सापेक्षता है । 'स्व' के मूल्यांकन और 'पर' के मूल्यांकन की सापेक्षता है । इन दोनों को साथ लेकर हम चलें । हमारा सारा जीवन-दर्शन, जीवन-यात्रा उभयात्मक पद्धति के आधार पर चलें । इससे समस्याओं का समाधान सरल बन जाता है। यदि दोनों में से किसी एक को अतिरिक्त मूल्य दे दिया जाता है तो समस्याएं उलझती हैं, सुलझती नहीं । समस्याएं जटिल बन जाती हैं। उन जटिल समस्याओं को सुलझाना सरल नहीं होता । व्यवहार और अध्यात्म आचार्य पूज्यपाद ने कहा- जो व्यवहार में सोता है, वह अध्यात्म में जागता है और जो अध्यात्म में सोता है, वह व्यवहार में जागता है । अनेकान्त की बात है । व्यवहार को अतिरिक्त मूल्य देने वाला अध्यात्म में कभी नहीं जाग सकता और जो अध्यात्म में जागता है, अध्यात्म में जागना शुरू कर देता है, उसका व्यवहार सो जाता है, कम हो जाता है। केवल व्यवहार तभी चलता है जब आदमी अध्यात्म के प्रति नहीं जागता । अध्यात्म के जागते ही व्यवहार सो जाता है । व्यवहार तब उतना ही बचेगा जितना जरूरी है | आदमी तब तक अधिक खाता है जब तक वह स्वास्थ्य के प्रति नहीं जाग जाता । जब स्वास्थ्य के प्रति जागरण होता है तब भोजन संतुलित हो जाता है । आदमी तब तक अधिक बोलता है जब तक वह अपने प्रति नहीं जाग जाता । जब वह अपने प्रति जाग जाता है तब बोलना स्वतः कम हो जाता है । आदमी सोचता रहता है, इतना सोचता है कि उसे क्षणभर का भी विश्राम नहीं मिलता । दिमाग संकल्प-विकल्प से आक्रान्त रहता है। जब व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य प्रति जाग जाता है, तब लगता है कि यह खतरनाक सौदा है। मस्तिष्क को विश्राम देना चाहिए । जब तक आदमी में अध्यात्म की चेतना नहीं जागती, तब तक कोरा व्यवहार चलता है । जब अध्यात्म की चेतना जाग जाती है तब आवश्यकता मात्र का व्यवहार बन जाता है, शेष व्यवहार छूट जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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