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सापेक्ष-मूल्यांकन
दूसरों को जानना ही खतरा
ध्यान शिविर चल रहा है । बहुत लोग इसमें सम्मिलित हुए हैं । वे यहां इसलिए आए हैं कि वे अपने प्रति जाग सकें । वे इसलिए आए हैं कि वे अपने आपको जान सकें। प्रश्न होता है—क्या दूसरे के प्रति नहीं जागना है? क्या दूसरे को नहीं जानना है ? किन्तु यहां कुछ उल्टा ही चल रहा है। मनुष्य का स्वभाव है कि वह दूसरों के प्रति बहुत जागता है, दूसरे को बहुत जानता है । वह दूसरे के प्रति इतना जागने लगा है, दूसरे को इतना जानने लगा है कि वह अपने आपको भूल ही गया। प्रत्येक घटना और परिस्थिति में हमारा सीधा ध्यान दूसरे की ओर जाता है, अपनी
ओर कभी ध्यान ही नहीं जाता। इस एकांगी दृष्टिकोण और निरपेक्ष चिन्तन को बदलने के लिए मैं ध्यान को बहुत महत्त्व देता हूं।
ध्यान करने वाला व्यक्ति अपने प्रति बहुत जाग जाता है। अपने प्रति बहुत जागना खतरनाक नहीं है। दूसरे के प्रति बहुत जागना खतरनाक है। अपने आपको जानने में कोई खतरा नहीं है। दूसरे को जानना खतरे से खाली नहीं है। अपने आपको जानने वालों ने आज तक कोई खतरा पैदा नहीं किया, किन्तु दूसरों को जानने वालों ने सारे खतरे पैदा किए हैं। आज दुनिया में जितने बड़े खतरे हैं, उनको उन्हीं लोगों ने पैदा किया है जो अपने आपको नहीं जानते, केवल दूसरों को ही जानते हैं। शस्त्र-निर्माण और परिस्थिति
शस्त्रों का निर्माण क्यों हुआ? दूसरों को जानने के कारण ही शस्त्रों का निर्माण हुआ। कारण स्पष्ट है-कोई दूसरा आक्रमण कर देगा, आ जाएगा, मार डालेगा, लूट लेगा, इसलिए शस्त्रों की निर्मिति हुई । मूल कारण है-सुरक्षा । जब-जब दूसरों के प्रति अधिक ध्यान जाता है तब-तब जाने-अनजाने खतरे मंडराने लग जाते हैं। मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा बन गया है कि वह 'स्व' का मूल्य नहीं जानता, 'पर' का मूल्य ज्यादा जानता है । 'स्व' का मूल्य नहीं जानता, परिस्थिति का मूल्य ज्यादा जानता है।
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