________________
पचादिः
कुप्पहा बहवो जेण
कुलगिरि समुब्भवाणं
कुसलासय हेऊओ
कुमियतो इ
केरिसओ सो भिच्चो
को अभार समत्थहँ ?
को उत्तमाण माणो
को एत्थ निश्चसुहिओ ?
को कस्स सया जणओ ?
को करस सुओ ? को कस्स को किर कुलाभिमाणो ?
को जजरेइ कुंभे
को दत्तोपास
को तरह हंत हरिउ
को नाम गुणमरट्टो
को नाम नरकुटिय
को नाम पुरियारो
खज्जइ चडफडतो
खणदं सियरायरसा
खणसंजोय-विओए
खेइजइ खलु अप्पा
गज्जकुर गोराणं
गजंति मियं मधुरं परिति गयरोय-सोय-दोहग्ग
गरयाणं चिय भुषणम्मि गरुयाणं चिय विवयाओ दिसोसियाण वि
गीयं पलावपायें
घणगुणरसाई रामपदो
विषयः
विपरीतधर्मे
पात्रस्नेहे
पुण्ये
निवेदे
दाखे
उद्यमे
Jain Education International
पितृधनपरिभोगे
अनित्यतायाम्
धर्मनिषेध
शुभाशुभोदये
अपुत्रत्वे
देशाटने
मृगयानिषेधे
धीरे
धीरे
धैर्य
निरौ
प्रौढत्वे
दोषविवेके
पति विय पेपणे पर्णगणाओ चरणपडिवत्तिविग्धं चंदो गहाण मेरू [गाथाद्विकम् ] जैनधर्मे
चाप बलेर परमे
चिड ता सेसजणो
चिरंतु ताव सणा
चिरजीवियमारोग्यं चितानडिओ अत्रमाण
सुभाषितपधानामनुक्रमः ।
पत्रम् - पद्याङ्कः
१७५
४४
७
एकत्वभावनायाम् २०३ - २७५
२.९- ५२
शरणदाने
९०- १२७
१३५- २१३
१८०- १४१
१९५- १११
सुज
सद्भावे
तान्तरायदोषे
७०
६६- ९३
१३६- २३४
२०- ३३०
४- ३९
असहायदशायाम् १४५- ११५ पुरुषनिन्दायाम १४- ११६ संसारासारतायाम् १९२देहासारतायाम् १०९- ५० गणिकानन्दायाम्
४७
सौजन्ये जिनबिम्बनिर्माण
९८- १६७
१५- २००
६०- ८
९८- १६६
१४३ - ७२
९२- १३३
९- ९९
६४- ५९
४७- ४३५
१२८- ६६
४८- ४४६
४९
१०- ११८
१३३- १५२
१९- १२६
२०९
२००-२१२
१८० - १४०
२- १५,१६
देवे ६१- १० स्नेहापाये २०३- २७४ देहासारतायाम् १७९- १२९ अहिंसायाम् ११०- १०६ दरिद्रे
१८१- १५०
छह
विषयः भार्या साहचयें छमाणो तेओ [गाधाद्विकम् ] शीलवत्याम् छेदमनुत्तमागो
दरि शक्यसेवास्तुती
अनुरागे रूपः- संयमयोः विघ्नानालम्बने संयमस्खलनानालम्बने
धनवति
कन्यादाने
धर्मे लोम-सन्तोषयोः
देवे
पद्यादि
तुच्छा
छुहियाण भोयणम्मि व
छूटं संजमको
जर कवि कम्बदोशा
जड़ को कम्मोसा
जइ वि न दीसइ पयडा
जइ वि मणुन्ना कना
जग्गइ सुपसुताग वि जत्तियमेत्तो लोहो जत्तो जत्तो वचइ
जत्थत्थमे तरणी
जम्म- जर मरणनीरे
जम्म- जर मरणवेयणजम्म-र-रोग-सोगा जय जिण कप्पसालो
जय जिणत्रयण गंभीरजयइ जिणाणा गंगा
जयणाए बट्टमाणो
जयणा उ धम्मजणणी. जयपयड जइवरगं
जइ विपत्थिति पर जरिओ ति मभी मुझे
जल पत
जह पत्थगालसाणं
जह पीछे दो
छ आयरि
दुध जिबूरि जं न मणोरहविसओ
जं पय-देवस-तसरीपीमं भोगसुह
जं पुण सोमसहावेसु पेच्छया पुरिसा
शूरे
धर्म
For Private & Personal Use Only
हि जम्मण-जर-मरण-रोय- धर्मश्रणे
जहि जण
जिमित्त
जं काऊण वि पावं
जं गब्भगया वियलंति
संसारासारतायाम्
कामल्यागे
जैनधर्मे
जिन प्रवचने.
यतनायाम्
""
यतिद्वेषिणि
धनसति विघ्नानालम्बने
विषये
धर्माचरणे
अदानादाने
तीर्थप्रभावनायाम्
दुर्जन-सुजनयोः
हिंसादोषे
धमें
देवे
धर्मे
पत्रम् - पधाङः
२००- २१५ ११७- १३०, १३१
१८१- १५२
विषयासारतायाम् मृगयानिषेधे दी
२३७
१६५- १४७
७२- १८०
३८- १७०
१८० - १३६ १८० - १३५
९२- १३२
१४२- ५७
१८५- १९५
१२०- १५०
१४१
४९
३३- ४३
७७- २६६
१९२- ४६
६९- १३४
१
१
१३८
२०६
१७२
१
२९- ४७७
२९- ४७६
१८०- १४८
९२- १३१
१८०- १३७
३८- १६१
३८- १६७
११४- १२०
१०९- ९४
२८- ४५७
४८- ४५७
११०- १०९
४०- २०९
९७- १६२. ५- ५४
८९- १२६
१७० - २०७
१४२
६९
४८- ४६१
www.jainelibrary.org