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________________ षष्ठ परिशिष्ट (पृ० २३६ से २४१) इस ग्रन्थ में आई हुई विविधविषयक कुल ४२१ सुभाषित गाथाओं के आधचरण, उसके विषय और स्थानदर्शक पृष्ठांक के साथ, अकारादिवर्णक्रम से इस परिशिष्ट में दिये हैं। सप्तम परिशिष्ट (पृ० २४२ से २५०) प्रस्तुत ग्रन्थ में विविध उक्तिरूप से आये हुए गद्य-पद्यांश, उनके विषय और स्थाननिर्देश के साथ, अकारादिवर्णक्रम से अक्षरशः इस परिशिष्ट में दिये हैं। विविध पृथ्वीचन्द्रचरित्र मेरे स्वल्प अन्वेषण में अन्योन्य भिन्न कथावस्तुवाले दो परम्परा के पृथ्वीचन्द्रचरित्र ज्ञात हुए हैं। एक आ० श्री शान्तिसूरि रचित प्राकृतभाषानिबद्ध पृथ्वी चन्द्रचरित्र जो पाठकों के हाथ में है । इसको कथावस्तु का अनुसरण करके अनेक जैन विद्वानों में संस्कृत और गुजराती भाषा में पृथ्वीचन्द्र चरित्र की रचना की है। दूसरी परम्परा का पृथ्वीचन्द चरित्र हैमाणिक्यसुन्दरसूरिकृत गुजराती भाषानिबद् । इस चरित्र की कथावस्तु का अनुसरण करके अन्य जन विद्वानों ने गुजराती और संस्कृत में पृथ्वीचन्द्र चरित्र की रचना की है। प्रथम परम्परावाले पृथ्वीचन्द्रचरित्र की सूची इस प्रकार है १. पृथ्वीचन्द्रचरित्र, कर्ता-आचार्य शान्तिसूरि, भाषा प्राकृत, रचनाकाल-वि. सं. ११६१ । यह चरित्र पाठकों के हाथ में है। . २. पृथ्वीचन्द्र चरित्र, कर्ता-खरतरगच्छीय जयसागरगणि, भाषा संस्कृत, रचनाकाल-वि० सं० १५०३, यह २६५४ श्लोक प्रेमाणवाला ग्रन्थ है और अप्रकाशित है । ३. पृथ्वीचन्द्र वरित्र, इसकी रचना वि. सं. १५३७ में पूर्णतल्लगच्छीय श्री रत्नसागरगणि ने संस्कृत में की । इस ग्रन्थ का श्लोक प्रमाण १८४६ है । इसे यशोविजय जैन ग्रन्थमा ठा (भावनगर) ने वि. सं. १९७६ में प्रकाशित किया है । इसके सम्पादक न्या. न्या. प्रवर्तकजी श्री मंगलविजयजी है। ४. पृथ्वीचन्द्रचरित्र, वि. सं. १८८२ में संस्कृत भाषा में पं. रूपविनयगणि ने इसकी रचना की । ५९०१ श्लोकप्रमाणवाले इस ग्रन्थ का प्रकाशन ए. एम. एण्ड सन्स पालीताणा की तरफ से हुआ है। ५. पृथ्वीचन्द्रचरित्र, वि. सं. १८०७ में कडवागच्छीय श्री लावाशाह ने पृथ्वीचन्द्र गुण]सागरचरित्रबालावबोध के नाम से इसकी गध में रचना की है । इसकी भाषा गुजराती है। इस कृति विषयक जानकारी 'जनगुर्जरकविओ' भाग ३ खण्ड २ पृष्ठ १६६८ में से ली है। १-श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिर (पाटन) में स्थित श्री संघ जैन ज्ञानभण्डार में इस ग्रन्थ की प्रति है, इसमें श्ल कप्रमाण २७७१ है, इस प्रति का क्रमाङ्क १६८० है । २-पृथ्वीचन्द्र और गुणसागर ये दो कथानायक होने से यह चरित्र पृथ्वीचन्द्र-गुणसागरचरित्र के नाम से भी प्रसिद्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001370
Book TitlePuhaichandchariyam
Original Sutra AuthorShantisuri
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages323
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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