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पुहवीचंदचरिए पंचमे पुण्णचंद - पुप्फसुंदरीभवे
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रोविय रयणीए एयं गिहं नेमो' । तुट्ठो गओ तयाणयणत्थमेसो | इयरे वि रयणाणि गहाय लहुं चेव पलाणा । विट्ठू त्रि समागओ ते अपेच्छंतो मुच्छिओ खणमच्छिय झूरंतो चेव पडिनियत्ततो दिट्ठो केणइ कुंठेण । 'कत्थ पुण earnt एसो पत्थgoat ?' त्ति संकिरण तम्मग्गेण गंतूण सच्चविया खड्डा । ताहे निवेइयं जहोबलद्धं राइणो । तेाविवाहरिक पुच्छिओ विछ्र । सिट्ठे जहट्टिए 'चोरो चोरभत्तदायगो' त्ति कयसव्वस्सहरणो निद्धाडिओ 5 नयराओ । तओ उम्मायगहग्गहिओ कंचि कालमइवाहिऊण पडिवनदीहनिदो जाओ सारमेओ । तं चैव घरं परिमहिऊण ठिओ केणावि अकयतत्ती दुहजीवियं जीविऊण मओ समाणो उवबन्नो तत्थेव बिरालो । रसवई प्रविसंतो पहओ सूयारेण पंचत्तभूओ जाओ दरिद्दमायगो । तओ वि जीववहाइपात्र पत्रणपणोलिओ पत्तो रयणप्पभानेरइयभावं महादुक्खमहतो चिट्ठा ।
सुविट्ठू विनाओवत्त वित्तनिव्वत्तियतित्रग्गसामग्गी सुत्थिओ चिरं जीविऊण समाहिणा विहियदेहचाओ जाओ 10 उत्तरकुरुमिहुणगो । तत्थ वि दसप्पयारकष्पपायवसंपाइयपभूयमुहपमुइओ तिपलिओवममच्छिऊण गओ सोहम्मं कप्पं । तत्थ वि सुररमणिरमणदुल्ललिओ पलिओवमं गमिऊण जाओ इहेव विजए जयत्थलम्मि चेव पउमदेव-देवईणं पियपुत्तो निव्वत्तियगुणायरनामो पवढिओ सुहंमुहेण ।
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दिति वारिस के वि सुत्थीकयपरियण, दीणुद्धरणि रमंति अग्नि संतोसियमग्गण ।
कुहिं विलास जणप्पयास नर नरवइनिब्भय, अज्जियधम्महँ ताइँ तह त्रि निट्ठाइ न संपय ॥ १४६ ॥ 20 आयासहि अप्पाणु नाहि नाशाविहकम्मिहि", न तरहि सायरु न य भमंति देसि हि दुग्गमिहि । कुहि न कस्स आण माणु माहष्णु न मेल्लहि, तह वि समज्जियधम्म धीर सिरिसंगय खेल्लहि ॥ १४७ ॥
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इओ य सो विटुजीको नरयाओ उबट्टिऊण पउमदेवमित्तस्स धणंजयस्स जयाए जायाए जाओ गुणहरनामधारओ दारओ । पुव्यनेहेण जाया तेसिं मेत्ती । पत्तजोव्वणा य जाया दो वि धणज्जणुज्जयमणा ।
नया उज्जाणे धम्मदेवणी वंदिऊण पुच्छिओ तेहिं धणज्जणोत्रायं । तेणावि परहियावहिय हियएण भणियंHer ! करेr धर्मं अकलंकमसेकमाणसा सम्मं । एगतिओ उवाओ न एत्थमन्नो जमेयाओ ॥ १४५ ॥ अवि य
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तहा
पहु सेवहि वाणिज्ज करहि रयणायरु लंघहि, परु पत्थहि चडुकार फार हलि हालिय लग्गहि ।
सिहि किलिस्साह खडहि वाड अरहट्ट पयट्टहि, सुकयविवज्जिय जीव तह वि जियलोइ न लट्टहि ॥ १४८ ॥ रोहणु खणहि धर्मति धाउ देवय आराहहि ँ, पैविसहि विवरि मसाणि मंत-विज्जहु संसाहहिं । निहि मग्गति खर्णति भूमि पुच्छहि रसकूत्रिय, पुनरहिय खिज्जिर मरंति सिरिमुह अविकोविय ॥ १४९ ॥ अन्नं च
जत्तियमेत्तो लोहो तत्तियमेत्तं जियाण दालिद्दं । चलणं दाऊण धणीण मत्थए सुबइ संतुट्ठो ॥ aai नियंतो विदाइ धणी त्रि अदरिदो व्व । रोरो वि ईसरायइ संतोसरसायणे पीए ॥ जोयणसयं न दूरं पडिहासइ लोहमोहियमणस्स । करगज्झे वि पयत्थे संतुट्ठो णाऽऽयरं कुणइ ॥ जइ सव्वहा न सकह मोत्तुं दविणग्गदं महाभागा ! । इच्छाए परिमाणं तहा वि काउं फुडं जुतं १ मुणि जे० ॥ २ हायहि ल १ २ ॥ ३ परसहि खं१ ॥
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१५० ॥
१५१ ॥
१५२ ॥
॥ १५३ ॥
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