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३. मनोहरपुर के श्मशान में संजयन्त मुनि पर उनके पूर्व वैरी विद्युदृष्ट्र विद्याधर द्वारा उपसर्ग ।
३२३ ४. रक्षा-निमित्त पूर्वभव के भ्राता जयन्त धरणेन्द्र का आगम और विद्याधर का
दमन, तथा सूरप्रभ देव द्वारा समाधान व पूर्वभव वर्णन । सिंहपुर के राजा सिंहसेन, रानी रामदत्ता, पुरोहित श्रीभूति जो सत्य के लिये प्रसिद्ध था।
उसकी श्रीदत्ता पत्नी । पद्मिनीपुर के वणिक् भद्रमित्र का भागमन । ५. भद्रमित्र द्वारा पांच रत्नों की श्रीभूति के पास धरोहर । किन्तु मांगने पर
अस्वीकार । राजा के भी न्याय में विमुख होने पर वणिक् पागल हो गया। ३२४ उसको राजप्रासाद के समीप वृक्ष पर चढ़कर श्रीभूति द्वारा रत्नों के हड़प जाने की पुकार । रानी रामदत्ता का उस ओर राजा का ध्यान पाकर्षण ।
३२४ ७. रानी द्वारा श्रीभूति के साथ द्यूतक्रीड़ा व उसके घर अभिज्ञान भेजकर, उन रत्नों की प्राप्ति ।
३२५ ८. अन्य रत्नों में मिलाकर भद्रमित्र द्वारा रत्नों की पहिचान व श्रीभूति को दण्ड । ३२५ ९. श्रीभूति का सर्वस्वहरण व मरण । राजा के भाण्डागार में अगंधन नाग का
जन्म । राजा द्वारा भद्रमित्र की राजश्रेष्ठि-पद पर तथा धम्मिल्ल की पुरोहित
पद पर प्रतिष्ठा । वरधर्म मुनि का आगमन व राजा द्वारा श्रावक व्रतों का ग्रहण । ३२५ .. १०. वरधर्म मुनि का अपनी ही पूर्वजन्म की माता व्याघ्री द्वारा भक्षण व रामदत्ता
रानी के सिंहचन्द्र पुत्र के रूप में जन्म । दूसरा पुत्र पूर्णचन्द्र । राजा सिंहसेन का भाण्डागार में उस नाग के द्वारा दर्शन । गारुड़िक का मंत्र प्रयोग ।
३२६ ११. मंत्र के प्रभाव से व विष खींचने की स्वीकृति के कारण प्रगंधन नाग का
अग्नि में विनाश व कालवन में चमर मृग का जन्म । राजा का हाथी का जन्म व धम्मिल्ल पुरोहित का बन्दर का जन्म । सिंहचन्द्र राजा व पूर्णचन्द्र युवराज । पोदनपुर का राजा पूर्णचन्द्र ।
३२६ भद्रबाहु मुनि से पूर्णचन्द्र व रानी हिरण्यवती की दीक्षा । दत्तवती प्रायिका सहित महामुनि पूर्णचन्द्र का दर्शन व रामदत्ता के विषय में प्रश्न । उसके विधवा होने का समाचार । जाकर रामदत्ता को संबोधन ।
३२७ रानी रामदत्ता की दीक्षा। भद्रबाहु मुनि का आगमन व सिंहसेन के पुत्र सिंहचन्द्र का तप-ग्रहण । पूर्णचन्द्र राजा। सिंहचन्द्र दिव्यज्ञानी चारण मुनि । पूर्णचन्द्र राजा का मिथ्यात्व । जननी रामदत्ता को सिंहचन्द्रमुनि का दर्शन व
प्रशंसन । भवान्तर कहने की प्रार्थना। १४.
कौशल विषय, वर्धकी ग्राम, मृगायन भट्ट । मृत्यु पश्चात अयोध्या के राजा अतिबल की व रानी श्रीमती की पुत्री हिरण्यमती, जिसका पोदनपुर के राजा पूर्णचन्द्र से विवाह व पूर्वजन्म की मधुरा का रामदत्ता के रूप में जन्म । रामदत्ता से पूर्वजन्म की मृगायन की पुत्री वारुणी का पूर्णचन्द्र रूप में जन्म । उक्त रत्न के स्वामी भद्रमित्र का स्वयं मुनि सिंहचन्द्र के रूप में जन्म। राजा का हस्ती के रूप में जन्म व उपदेश से श्रावक-व्रत ग्रहण ।
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