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कडवक
१.
२.
३.
वीरभद्र जयभद्र मुनियों का श्रागमन । वहां नर-कपाल से निकले तीन बांसों को देखकर मुनि की भविष्यवाणी कि वे राजा के अंकुश, छत्र और ध्वजा के दंड
होंगे ।
इस भविष्यवाणी को सुन एक विप्र का उन्हें काटना । करकंडु का उससे छीनना । उसके राज- लक्षण देख विप्र का विनय । ४. करकंडु के पूछने पर विप्र का आत्मनिवेदन । पाटलिपुर का सुमति नामक सकलकला प्रवीण किन्तु निर्धन पंडित । अर्थोपार्जन निमित्त सब कुछ किया और सर्वत्र गया । किन्तु कार्य सिद्ध नहीं । भ्रमण करते करते श्राना व मुनि वचन सुनकर बांस काटना ।
निद्रा ।
५. करकंडु से विप्र की याचना कि राजा होने पर उसे मंत्रिपद दिया जाय । ६. करकंडु की स्वीकृति । वृक्ष के नीचे दंतीपुर के राजा बलवाहन का पुत्रहीन मरण । मंत्री की चिन्ता । पट्टहस्ती का श्रृंगार कर सूंड में कलश दे राजा की खोज का निर्देश ।
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बार व्रतभंग का फल क्रमशः जन्मते ही जलप्रवाह, हाथी द्वारा अपहरण और माली के घर से निस्सारण ।
८.
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संधि - १७
बलदेव खेचर के घर बालक का संवर्धन । एक दिन पद्मावती उसे देखने प्रायी और उसे हाथ खुजलाते देखकर करकंडु नाम दिया । विद्याधर द्वारा नाना शास्त्रों की शिक्षा |
७. हाथी का श्मशान में जाकर करकंडु का कलश से स्नान । करकंडु का हस्ति आरोहण । कुछ लोगों की मातंग के आपत्ति । द्विज का श्रागमन ।
द्विज का विनय व आशीर्वाद । लोगों का संशय - निवारण । करकंडु का नगर प्रवेश व राज्याभिषेक |
बलदेव विद्याधर का प्रकाश में विमान से अपना व करकंडु का परिचय देकर सबको प्राश्वस्त करना ।
सबका जयघोष । राज्याभिषेक पर
१०.
उन बांसों के अंकुश छत्र व ध्वज-दंड निर्माण । द्विज को मंत्रिपद प्रदान । पद्मावती का आगमन व आशीर्वाद और शिक्षण देकर निर्गमन |
११. चम्पापुर नरेश के दूत का श्रागमन व सेवा की मांग, अन्यथा अाक्रमण का भय । १२. करकंडु का अस्वीकार ।
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१३.
दूत का पुनः श्राग्रह व भय प्रदर्शन ।
१४. करकंडु की सभा के सभी सामन्तों व मंत्रियों का रोष, दूत की भर्त्सना व स्वामी को वीरतापूर्ण संदेश |
१५. दूत का लौटकर स्वामी को आवेदन । चम्पा नरेश का सैन्य सहित प्रक्रमण ।
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