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________________ १८२ ७. १८२ १८. १८३ १८४ ( ५२ ) १६. हाथी का दंतीपुर के पद्मसरोवर में प्रवेश, रानी का उतरकर वटवृक्ष के नीचे ठहरना, माली का जल भरने आना व बहिन कहके पद्मावती को घर ले जाना। चार मास सुख से व्यतीत । माली की अनुपस्थिति में मालिन द्वारा घर से निस्सारण । पद्मावती का श्मशान में पुत्रजन्म । मातंगवेषी पुरुष का आगमन व प्रात्मनिवेदन । भारत देश विजयाध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में विद्युत्प्रभपुर, विद्युत्प्रभ राजा, विद्युल्लेखा महादेवी । उनका पुत्र मैं बालदेव, पत्नी हेममाला । एक दिन मलयाचल की ओर विहार । लौटते समय मथुरा के ऊपर विमान स्थगित । नीचे योग में लीन ऋषि । उन्हें विमान के निरोध का कारण जान अपमान । विद्या विच्छेद का शाप और क्षमा याचना। १९. शाप का अन्त तब जब दंतीपुर के श्मशान में पद्मावती द्वारा प्रसूत पुत्र का तू चाण्डालंवेष में पालन करेगा और युवक होने पर उसका राज्याभिषेक होगा। तभी से मैं (मातंगवेशी विद्याधर) यहाँ प्रतीक्षा में। मातंग ने बालक की याचना की। उसे लेकर घर आया और पत्नी को दिया। पद्मावती जिनमंदिर में गयी और अजिंका के पास रहकर निरोग हुई । अजि कामों के साथ समाधिगुप्त मुनि की वन्दना को गई। २१. पद्मावती ने मुनि से अपने पति-वियोग का कारण पूछा। मुनि का उत्तर श्रावस्तीपुरी, वणिक् नागदत्त, पत्नी नागदत्ता व्यभिचारिणी, उसे छोड़कर पति की मुनि-दीक्षा, स्वर्ग-गमन । वहां से चम्पापुर में धाड़ीवाहन नरेश । २२. नागदत्ता का जार दंतीपुर के वन में हाथी होकर धाड़ीवाहन का रेवातिलक हाथी हा। नागदत्ता ताम्रलिप्ति नगर में वसूदत्त वणिक की पत्नी नागदत्ता हुई। उसकी दो पुत्रियां धनवती और धनश्री। धनवती का विवाह नालंदा के धनपाल से । उसने बौद्धधर्म ग्रहण किया। धनश्री का विवाह कौशाम्बी के वणिक् वसुमित्र से । वह हुई श्राविका। माता विधवा व निर्धन होकर लघु पुत्री के पास कौशाम्बी पाई। २४. नागदत्ता का मुनि के पास रात्रिभोजन त्याग का व्रत ग्रहण । नालंदा जाने पर व्रत खंडित । इसी प्रकार पाते जाते तीन बार व्रत-ग्रहण और खंडन । अन्त में धनश्री के पास व्रत लेकर मरण व वसुपाल नरेश की देवी वसुमती के गर्भ में जन्म । माता की पीड़ा। २५. जन्म से गंगा हृद से पेटिका में पायी जाकर माली द्वारा पाली जाने का वृत्तान्त । २६. माली द्वारा पत्नी को सौंपने से लेकर राजा को अपना दोहला प्रकट करने तक का वृत्तान्त । २७. नगर की प्रदक्षिणा को निकलने से लेकर दंतीपुर के सरोवर में हाथी से मुक्ति तक का वृत्तान्त । २८. माली के घर पहुँचने से लेकर मातंग द्वारा पुत्र ग्रहण तक का वृत्तान्त । तीन १८४ १८५ १८५ १८६ १८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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