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५०. ५. ४ ]
रज्जु करतें श्रावइ पाविय तहो प्रनाउ नियवि नयवंतह इउ मंतु सव्वहँ मणे भाविउ मिलिउ परिग्गहु सयलु वि एविणु मायामहो पासे जाए बिणु रज्जभट्ठ होविन्नित्ति भमित्त तो मित्तु पियारउ मित्तमाउल हो केरी
सो परिणणहँ न पावइ श्रवरहो
घत्ता
वत्त सुप्पि सेणियराणउ राउ तहिँ जाव ण हय वाहिय सुट्ठ वि सूरा पउर भयंकर तट्ठा के वि निरुद्धा बद्धा चप्पवि नियवि निरारिउ सेन्नहो एम भणेवि कुमारि वियारिय हूवंतरि तहँ जिवणंतरे चडिउ पलाइऊण गरुयार
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५. १ तेत्थ ।
ता उवएसु तासु सुहयारउ
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कहको
प संखेवें
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- इय वत्त सुणेष्पिणु तत्थावेप्पिणु मेलावेष्पिणु सुहड सय । ते मड्डे हप्पिणु कन्न लएप्पिणु जणहो नियंतो वे वि गउ ।। ३ ।।
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घत्ता - मुणिदत्तु भडारउ भवभयहारउ सहुँ संघेण नियच्छिउ । भयवेविरगत्तें पावविरक्तें तेण नवेष्पिणु पुच्छियउ ॥ ४ ॥
पय चिलाय पुत्ते संताविय । जाउ अचित्तु मंतिसामंतहँ । से णिउ कंचिपुरहो प्राणाविउ । नीसारिउ वाइउ चप्पेविणु । काणणे विसमु कोट्टु विरविणु । थिउ जीवइ मावइयहो वित्ति । नं रामो लक्खणु दिहिगारउ । धीय सुहद्द सुहाइँ जणेरी । दिज्जइ लग्गी साविय पवरहो ।
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अणुलग्ग सेणा समाणउ । पिणु वणवेसि पडिगाहिय । रायहँ कि करंति किर तक्कर | के वि कियंत हो जंपणे छुद्धा | जिह म्हँ तिह होइ न अन्नहो सा चिलायपुत्ते संघारिय ।
अप्पणु पाणभएण दुसंचरे । पव्वयम्मि पावर्ण वइभारत ।
तं जहा - जं इच्छसि तं नेच्छसु' जं पुण तं इच्छसु' जइ इच्छसि
२ इच्छसि ।
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सारुवसु कहिउ जो देवें । हिउ रिसीसें सव्वहँ सारउ । नेच्छसि तुमं पुरिससीह । संसारमहन्नवं तरिढुं ॥
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