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संधि ५०
सव्वंगु वि मिलियहिँ उज्जंगुलियहिँ चालणि व्व किउ धीरमण ।
तइवि हु निरवज्जो न वि नियकज्जो चलिउ चिलायपुत्तु समणु ।। मगहाविसण मासि गुणवंतउ
गुणहिलु सत्थवाहि वणि होतउ । तेण सियालय पर्थ समत्थें
गच्छंतेण समेउ ससत्थें । मुणि गामंतर तवधरनामउ
भिक्खागउ निएवि जियकामउ । ५ सिद्धउ अन्न नत्थि समभाविउ
गुलु तिलवट्टि देवि भुंजाविउ । तेण फलेण दीव पढमिल्लप
हइमवयम्मि खेत्ते सोहिल्लए । कालु करेप्पिणु कोसपमाणउ
हुउ पलिग्रोवमजीविउ माणउ पुणु नंदणवणे सुरु तत्तो चुउ
मगहामंडले रायगिहे हुउ। पस्सेणियहो नरिंदही नंदणु
रूवें जणमणणयणाणंदणु। १० जणिउ चिलायण देविण जेण जे
नामु चिलायपुत्तु किउ तेण जे। घत्ता-एक्कहिँ दिणे राएँ बद्धकसाएँ अउदायणु उज्जेणिपुरि ।
संगरि संदाणहि बंधेवि प्राणहि पेसिउ पज्जोयही उवरि ॥१॥
ता तहिँ गउरउरगपुरसामि उ
पज्जोएण वि रण आयामिउ । बंधेवि धरिउ सुणेप्पिणु धुत्तें
विजयक्खेण नराहिवपुत्तें । तत्थ सत्थवाहिणउ हवेप्पिणु
आणिउ गपि छलेण हरेप्पिणु । रोसें तेण देसु नासंतउ
सबलु होवि पज्जोउ पहुत्तउ । प्रायन्नेप्पिणु पहु चिंताविउ
पट्टणम्मि पडहउ देवाविउ । ५ जो मह वइरि धरेप्पिणु दावइ
सो जं मग्गइ तं फुडु पावइ । ता चिलायपुत्तें हेराविउ
सरे जलकील करतउ पाविउ । बंधेवि उज्जेणीवइ आणिउ
तूसे प्पिणु नंदणु सम्माणिउ । दिन्नउ मग्गिउ मगहाराएँ
पुरे सच्छंदविहारु पसाएँ । घत्ता-बहुकालें राणउ सुठ्ठ सयाणउ घरु पुरु परियणु परिहरेवि । १०
भवसयमलहरणहो गउ तवयरणहो रज्जे चिलायपुत्तु धरेवि ॥ २ ॥
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