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________________ ४८८ ] सिरिचंदविरइयउ [ ४८. १२. ६अन्नहिँ घर लेप्पिणु बंभचेरु थिय सुणिवि एउ निम्महियवेरु । जंपइ पुहईवइ जायखेउ जुज्जइ अम्हहँ घरे वउ ण एउ । इय भर्णवि निसिह भुक्तसाणे घल्लाविय एक्कल्लिय मसाणे । गुरुहारण नवमासहिँ तणूउ तहिँ ताण तम्मि समए पसूउ । घत्ता--एत्तहे हेक्करंतु सुहउ सिविणंतर सियवसहु निरिविखउ । १० सुप्पहाग पुह ईसरेण मइमयरहरहो मंतिहे अविखउ ।१२।। तेण वि आयन्नेवि भणिउ नाहु तुज्झज्ज देव हुउ पुत्तलाहु । जइ सिविणयसत्थु पमाणु अत्थि तो होइ ण मइँ भासिउ अणत्थि । सव्वाउ तो पहुणा पियाउ कहे जाउ पुत्तु पुच्छावियाउ । दूहवियहँ अम्हहँ ताहिँ वुत्तु पोट्टेण विणा कहिँ हूउ पुत्तु । जा पिय मेल्ल हि एक्कु वि न ताल तहे तणउ गवेसहि सामिसाल। ५ ता ताहि गवेसहुँ पहिउ पुरिसु तेण वि आवेप्पिणु जणिउ हरिसु । बद्धावियो सि लक्खणहिँ जुत्तु जायउ जिणयत्तम देव पुत्तु । निसुणेवि एउ परियोसिएण प्राणाविय सा पुहईपिएण । काराविउ पर मुच्छउ पुरम्मि तिहि वारि मुहुत्ति मणोहरम्मि । सिविण पालोइउ वसहसेणु किउ नाउ सुयहीं तें वसहसेणु। १० पुणरवि पत्थिवो अणोवमाए माणंतहो रइसुहु समउ ताए । संजाउ अट्ठवरिसिउ कुमार पच्चक्खु नाइँ सयमेव मारु । घत्ता-एक्कहिँ दिर्ण उक्कावडणु' अवलोइवि वइरायहो पाएँ । रायपटु तुह भालयले बंधमि भणिउ तणूरुहु राएँ ॥१३॥ १४ तणएण भणिउ कहि कवणु ताय महु बंधहि पटु कयाणुराय । किं नरहँ सुरहँ सुहसयनिवासु अहवक्खहि मोक्खपहुत्तणासु । पहुणा पउत्तु नररायप? बंधमि तुह पहयाहियमरट्ट । जो सग्गहरे मोक्खहो प? पुज्जु सो पर तवेण बंधइ' मणोज्जु । वयणेण एण परिहरेवि रज्जु किउ तेण सताएँ अप्पकज्जु । ५ रिसि होइवि एयविहारि जाउ विहरंतु संतु कोसंबि आउ । पायावणजोएँ सुंदरम्मि थिउ तत्थ दयावदगिरिवरम्मि । १३. १. एक्कवडणु। १४. १ वसह। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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