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________________ ४८. १२. ५. ] . कहकोसु [ ४८७ १० ता किं चि वि वक्कर करेवि धुत्ति पाणवि जलु गय गामउडपुत्ति । अक्खिउ नियतायो तरणितेउ रूवेण नाइँ सइँ मयरकेउ । अच्छइ एत्थायउ जणियहरिसु मइँ कूवि पलोइउ एक्कु पुरिसु । कोड्डेण तो तहिँ गउ जिणामु दिट्ठउ नररयणु मणोहिरामु । निच्छउ सामन्नु न एहु होइ परमेसरु पुहईपालु कोइ। इय चिंतेवि आणिउ नियनिवासु सम्माणिउ तेण विवक्खतासु । भुंजेप्पिणु खणु वीसमइ जाम अणुमग्गे खंधावारु ताम। आइउ आलोइउ सामिसालु परिप्रोसिउ पामरलोयवालु । घत्ता--मग्गिय कन्न नराहिण तेण वि दिन्न विवाहेवि प्राणिय । बहुगुण पडिहासिय मणहो किय महएवि सुधु सम्माणिय ॥१०॥१० परिपालियइलु चिंतियतिवग्गु परिहरेवि समग्गु वि इथिवग्गु । सहुँ ताण विलासहिँ पहयसत्तु अच्छइ अहनिसु अणुरत्तचित्तु । एक्कहिँ दिर्ण खड्डहिँ पडिउ नाउ प्रायन्नेवि बहि नीसरिउ राउ । तहिँ काले रुट्ठ जिणयत्त देवि किं बाहिर निग्गउ मइँ मुएवि । सव्वाउ ताउ परिप्रोसियाउ जंपति पुहइपालहो पियाउ। हले कम्मणवंडिग रइयराढ तुहुँ कुट्टणि गरुई मगरदाढ । न मुहुत्तु वि मेल्लइ तेण कंतु अच्छइ वामोहिउ मुहु नियंतु । जइयहुँ पहूइ तुहुँ प्राय एत्थु तइयहुँ पहूइ जायउ अणत्थु । वत्त वि कयावि पुच्छइ न नाहु पइँ भग्गउ अम्हहँ जणियडाहु । खले मायाविणि दुक्कियनिवासे जाएवउ नरयहो पइँ हयासे । घत्ता-जं पइँ अम्ह कएण किउ लइ तं तुझ वि संपइ सिद्धउ । अहवा जं किज्जइ परहो एइ घरहो त एउ पसिद्धउ ।।११।। फुडु एवहिँ तुहुँ छड्डिय पिएण निसुणेवि एउ अच्चंत कुद्ध एत्तहे करिदु कड्डाविऊण कहिँ गय पिय पुच्छिय प्रायरेण वारंतिहे तुहुँ गउ देव जाम गउ मड्ड धरंतिहे तुज्झु तेण । थिय अन्नहि मंदिरे गंपि मुद्ध । कुंभिणिवइणा सहसाविऊण । ता केण वि कहिउ समच्छरेण । जिणयत्त कुविय तुज्झुवरि ताम। ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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