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४८. १२. ५. ] .
कहकोसु
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१० ता किं चि वि वक्कर करेवि धुत्ति पाणवि जलु गय गामउडपुत्ति । अक्खिउ नियतायो तरणितेउ
रूवेण नाइँ सइँ मयरकेउ । अच्छइ एत्थायउ जणियहरिसु
मइँ कूवि पलोइउ एक्कु पुरिसु । कोड्डेण तो तहिँ गउ जिणामु
दिट्ठउ नररयणु मणोहिरामु । निच्छउ सामन्नु न एहु होइ
परमेसरु पुहईपालु कोइ। इय चिंतेवि आणिउ नियनिवासु
सम्माणिउ तेण विवक्खतासु । भुंजेप्पिणु खणु वीसमइ जाम
अणुमग्गे खंधावारु ताम। आइउ आलोइउ सामिसालु
परिप्रोसिउ पामरलोयवालु । घत्ता--मग्गिय कन्न नराहिण तेण वि दिन्न विवाहेवि प्राणिय ।
बहुगुण पडिहासिय मणहो किय महएवि सुधु सम्माणिय ॥१०॥१०
परिपालियइलु चिंतियतिवग्गु
परिहरेवि समग्गु वि इथिवग्गु । सहुँ ताण विलासहिँ पहयसत्तु
अच्छइ अहनिसु अणुरत्तचित्तु । एक्कहिँ दिर्ण खड्डहिँ पडिउ नाउ
प्रायन्नेवि बहि नीसरिउ राउ । तहिँ काले रुट्ठ जिणयत्त देवि
किं बाहिर निग्गउ मइँ मुएवि । सव्वाउ ताउ परिप्रोसियाउ
जंपति पुहइपालहो पियाउ। हले कम्मणवंडिग रइयराढ
तुहुँ कुट्टणि गरुई मगरदाढ । न मुहुत्तु वि मेल्लइ तेण कंतु
अच्छइ वामोहिउ मुहु नियंतु । जइयहुँ पहूइ तुहुँ प्राय एत्थु
तइयहुँ पहूइ जायउ अणत्थु । वत्त वि कयावि पुच्छइ न नाहु
पइँ भग्गउ अम्हहँ जणियडाहु । खले मायाविणि दुक्कियनिवासे
जाएवउ नरयहो पइँ हयासे । घत्ता-जं पइँ अम्ह कएण किउ लइ तं तुझ वि संपइ सिद्धउ ।
अहवा जं किज्जइ परहो एइ घरहो त एउ पसिद्धउ ।।११।।
फुडु एवहिँ तुहुँ छड्डिय पिएण निसुणेवि एउ अच्चंत कुद्ध एत्तहे करिदु कड्डाविऊण कहिँ गय पिय पुच्छिय प्रायरेण वारंतिहे तुहुँ गउ देव जाम
गउ मड्ड धरंतिहे तुज्झु तेण । थिय अन्नहि मंदिरे गंपि मुद्ध । कुंभिणिवइणा सहसाविऊण । ता केण वि कहिउ समच्छरेण । जिणयत्त कुविय तुज्झुवरि ताम। ५
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