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________________ ४८. ७. ७ ] , कहको [ ४८५ तो जं मग्गह तं सव्वु देमि दुरियाइँ समग्गइँ खयहो नेमि । निसुणेवि एउ हरिसियमणेण काराविउ सिरियाहरु जणण । पयडियपरमुच्छव जणमणिट्ठ विरइय तप्पडिमहं तहिँ पइट्ठ । ५ अणवरउ जत्त जणु आइ' जाइ तो भोउ निवि सक्कु वि सिहाइ । परमेसरि सयल वि देइ सिद्धि इय हुय तह सव्वत्थ वि पसिद्धि । परमेसरि दिज्जउ मज्झु पुत्तु सयलुत्तमु सयलकलानि उत्तु । इय भर्णवि इला वि नरिंदपत्ति अणुदियहु पयासइ परम भत्ति । घत्ता--ता पडु जाव ण बहु दिवस ताहे तणिय निएवि गरुयारी। १० पुव्वविदेहु सयंपहहो गय तित्थयरहो पासु भडारी ।।५।। ५ पूच्छिउ पणवेप्पिणु भुवणसेव महु नयरे इलादेवीह देव। कहि अत्थि नस्थि किं पुत्तलंभु अस्थि त्ति पबोल्लिउ पहयडंभु । सग्गब्भुउ पुत्तु मणोहिरामु होसइ गुणभवणु पसिद्धनामु। परिप्रोसें एउ मुणेवि एवि सुमिणंतरे देविहे पुत्तु देवि । सिरियादेवी गय नियनिवासु आणंदिय मणे वल्लह निवासु। कइवयदिणेहि सोहग्गरासि सुंदरु सोहम्म विमाणवासि । सुरु वड्डमाणु नामेण ग्राउ नंदणु महएविहे गब्भ जाउ । सिरियादेवी विइन्नु जेण सिरिदत्तु नामु किउ तासु तेण । घत्ता-अवरु इलावद्धणनयर महएविन इलाप संजणियउ । सयलइलहे आणंदयरु तेण इलावद्धणु सो भणियउ ।।६।। १० कालें जंतें पत्तउ पमाणु रूवेण परज्जियपंचबाणु । किं वनमि सयलकलानिहाणु कंतीण चंदु तेएण भाणु । साकेयवइह अंसुवइ नाम नवजोव्वण पुत्ति मणोहिराम । संपत्ते सयंवरसमण तेण परिणिय आणंदिय जणमणेण । पडु पंडिउ एक्कु समे उ ताण पायउ कण इल्लु अणोवमाए। सो सक्खि करवि रंजियमणाहँ वहुवरहँ ताहँ दोहँ वि जणाहँ। एक्कहिँ दियहम्मि दुरोयरेहिँ कीलंतहँ कोऊहलकरेहिँ । ५. १ पइ । ६ १ सुमिणंतरे देवि गय नियनिवासु । ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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