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________________ संधि ४८ धुवयं-अवरु वि आसि एत्थु भरहे चंपापुरे परमत्थवियारउ । _होतउ तवसंजमनिलउ धम्मघोसु नामेण भडार उ ।। सो एक्कहिँ वासरे वीयराउ क्यमासोवासु महाणुभाउ । गिरिगुह मुएवि गोयरे पइठ्ठ भुल्लउ हुउ काणणे मग्गभट्ठ । उण्हाला तण्हए तवियकाउ उप्पहे किम चल्लइ हरियकाउ । ५ गंगायर्ड बडतरुतले निविठ्ठ सुरतीरिणीय देवी दिठ्ठ । तहो तोहपरीसहु नियवि ताण आणेवि सुवन्नतंबालुयान । सीयलु सुयंधु जलु पियह एउ मुणि भणिउ कुणह तण्हाहे छेउ । केम वि पडिवन्नु न तेण जाम गय देवय पुव्वविदेहु ताम । तहिँ समवसरणं तित्थयरदेउ पुच्छिउ भवकाणणजायवेउ । १० परमेस पियास खविउ सुट्ठ निज्जणे वर्ण मइँ मुणि एक्कु दिठ्ठ । तहो ढोइउ पियउ न किं न वारि ता कहइ सव्वसंदेहहारि। घत्ता-देवि देवविज्जाहरहँ रिसि आहारु न लेंति निरुत्तउ । देवच्चण सम्मत्तु मुणिपाडिहेरु पर ताहँ पउत्तउ ।।१।। प्रायन्नवि एउ तुरंतियाण सव्वण्हु णवेप्पिणु एवि ताए । सीयलु सुयंधु निम्मविउ वाउ वरिसाविउ पाणिउ पहयताउ । साहू वि सुक्कझाणे पइठ्ठ बलवंतु वि घाइचउक्कु नठु। . उप्पन्नउ केवलु विमलु नाणु जायउ तिहुयणगुरु गुणनिहाणु। . तहो वंदणाण इंदाइदेव सहसागय सव्व गयावलेव । ५ अंचेप्पिणु पुज्जेप्पिणु थुणेवि गय नियपउ धम्मसवणु सुणेवि । साहू वि सेस कम्मइँ हणेवि गउ मोक्खहो धम्मु जणहो भणेवि । अवरु वि चिरवइरवसेण वाउ वेउन्विउ देवें पहयकाउ । जलु सीउ सहेवि पमायचत्तु सिरिदत्तु भडारउ सिद्धि पत्तु । घत्ता-पासि इलावद्धणनयर नरवइ णयविक्कमसंपन्नउ । निज्जियारि नामें पयडु होतउ दूरोसारियदुन्नउ ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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