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________________ ४६. ६.८ ], न भइ भिक्ख सुहिसयणहीणु जयवs भणिउ जइ एहु भदु ariतु भिक्ख घरि घरि ससंकु ता सुव्वया धाई वुत्तु तुम्हारा पुरिसपरंपराप्र ता जयवई साकरिवि सन्न मुणि नाणासत्थवियक्खणा वि सुम्मति रामलक्खणपहूइ अवरे वि इब्भसुय रायउत्त लहंत दीण देही भनंत विणु पुन्नहिँ पुत्तय तेण ते हिँ अवरु वि यन्नह प्रत्थि एत्थु सो आहारत्थु कयाइ नंगु' पासंडियवेसु कयाइ भमइ Jain Education International कहको घत्ता-ता सुप्पह पउत्तउ किं करलक्खणहिं । सुहसंपय परपुन्नहिँ लब्भइँ नउ गुणहि ||७|| सागडिउ अवरु संजायदोसु भोयत्तहँ विप्रभावे जात पुरे भिक्ख भमंतु जोहु नियइ अवर वि एवंविह पुनहीण विणु पुन्नहिँ सव्वत्थ विं प्रणत्थ फुडु लजालु महु मोहहेउ चितंतु सुकोसलसेट्ठि जाम विनविउ एहि मायंगगामि १ कया न ज्जगु । ५ ९ तुच्छइ लच्छीइ न होइ दीणु । ता दुक्खिउ किं जायउ दरिदु । परिभमइ तणुब्भव एहु रंकु । तुह देवि साहु निदहुँ न जुत्तु । सुम्मइ तउ लइउ परंपरा । अच्छी हिँ निवारिय थिय विसन्न । धत्ता - अवरु वि भीमु भणिज्जइ सयणविवज्जियउ । प्रत्थि एत्थु भिक्खारिउ दुक्खपरज्जियउ ।।८।। [ ४६३ बलविक्कमवंत सलक्खणा वि । पंडुय पयंड वि निव्विहूइ । बहुलक्खणवंजणगुणहिँ जुत्त । दीसंत जेण भिक्खं भमंत । किं किज्जइ सोहणलक्खणेहिँ । a man after वाहिधत्थु । परिहिउ कयाइ उद्धूलियंगु । चिर कियदुक्कियवसु दिवस गमइ । दंडिउ करणेण करेवि रोसु । भुक्खा सुहसोसिग्र सुक्खे का । निल्लज्जु समणवेसेण जिणइ । मग्गंत लोन दीसंति दीण । पुच्छह कुमार भणु काइँ एत्थु । याहिं पयासि सव्वु एउ । श्रच्छ सूयारें एवि ताम । वट्टइ तुह भोयणसमउ सामि । For Private & Personal Use Only ५ १० ५ १० ५ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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