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________________ ४५. २०. २ ], सद्दिउसो प्रवंतिसोमालउ परिणाविउ बत्तीस सुवन्नउ ताहँ निमित्तु तुंग नं सुरहर सुयह समप्पिवि सिरि निव्विन्नउ मायरी नेमित्तिउ पुच्छिउ इहुँहु साहु पेक्खेसइ नेमित्तियो वयणु निसुणेप्पिणु निग्गमु तणयहो तिहुयणवं दह भवणुज्जाणवणम्मि मणोहरि सुंदरु नियकुलकमल दिणेसरु रयणुज्जोएँ सत्तमभूयलि सुयइ समेउ पियाहिँ वियक्खणु कहो उवमिज्जइ णयणाणंदण वाणिय अट्ठ रयणकंबल हर सुरवइदव्व व' बहुमोल्लंकिय चलिय भमंत य पुरु दूसेप्पणु तेण वि पाणहियाउ रवन्नउ वत्त सुणेवि राउ परिश्रोसिउ धन्न हउँ जसु नयरि महाजसु तेण वि किउ उवयारु महंतउ महको १८ रायासें तहिँ जोयंतहिँ कुंडल हार कड कडसुत्तइँ १६. १ न । Jain Education International हुउ काले जुवाणु कलालउ । वणिउत्तीउ लडहलायन्नउ । काराविय पासाय मणोहर । - घत्ता - निसि कमलोयर म्म निहियकलमसालितंदुल पवरोयणु । भुंइ निरुवमु विविहरसु अट्ठारहभक्खहिँ किउ भोयणु ।। १८ ।। १९ जणु जइण पव्वज्ज पइन्नउ । तेण वि तो भवियव्वु नियच्छिउ । ५ तइहुँ फुडु पावज्ज लएसइ । चित्ति सुहद्द दुक्खु करेप्पिणु । वारिउ घरि पइसारु मुणिदहँ । कील कीलणवावि सरोवरि । गमइ प्रणेयविणोयहिँ वासरु | घत्ता - सहुँ सोमालें वाविजले कीलंतहो पुहईसह पडियउ ! हारु मणोहरु अंगुलिउ कंचणमउ माणिक्कहिँ जडियउ || १९|| २० [ ४५७ चित्तविचित्ते चारुसेज्जायलि । जाणइ सयल कलाउ सलक्खणु । [ अह दक्खिणपहाउ आगय पुणु । सव्वजणाण चक्खुमणसुहयर । ] राणवि हुँ सक्किय । लइय सुहद्द कंचणु देष्पिणु । सुवहु काराविवि दिन्नउ । पि भवणु वणिउत्पसंसिउ प्रत्थि धणड्डूपुरिसु पइँ जेरिसु । पहु पाहुणउ धरिउ नयवंतउ । पत्तइँ अवराइँ वि सामंतहिँ । विभि पहु पेक्खेवि बहुत्तइँ । For Private & Personal Use Only १० ५ १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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