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४५. १५. १० ] कहकोसु
[ ४५५ घत्ता-पडिवज्जिवि तह वयणु पुणु नायसम्मु जामग्गण गच्छइ ।
पच्छा वहेहिँ बधु नरु अवरु ताम निज्जंतु नियच्छइ ।।१३।।
पुच्छिउ कहइ निवाणावालउ
एहु पुरोहिय निवगोवालउ । एयहो नियगोउलि कयहरिसें
इच्छिय गाइ दिन्न पुहईसें । सव्वाण वि सा आइ करेप्पिणु
गो? गो? एक्केक्क लएप्पिणु । पुणु अणेण महएविहि केरी
लइय धेणु निव्वाडेवि सारी। ताण अणि? करेप्पिणु रायो
जाणाविउ पच्चक्खु वि प्रायो। ५ ता अवरेहिँ वि सव्वहिँ कहियउ
एणम्हाण वि गाविउ गहियउ । पहुणा उत्तउ चत्तविवेयहाँ
सूलारोहु करेवउ एयहो । आयनेवि एउ मणु कंपिउ
पुणु सहुँ ताएँ [ता] पयंपिउ । मइँ वि जणेर जीववहु सच्चउ
वज्जिउ परहणु वयणु असच्चउ । मन्निउ परनरु जणणसमाणउ
अवरु वि चत्तु गंथु अपमाणउ । १० सुहगइकारणाइँ जइ एय
वयइँ विवज्जमि विहियविवेयइँ । तो पावमि फलु जं पुव्वुत्तउ
मुणिवि एउ विप्पेण पउत्तउ । घत्ता-सुव्वय एयहिँ वयहिँ तुहुँ होहि पुत्ति को पइँ विणिवारइ ।
वेयपुराणेसु वि भणिउ धम्मसीलु अप्पउ परु तारइ ।।१४।।
किं पुणु एहि तत्थ जाएप्पिणु जेण न अवराइँ वि खलु खवणउ ता तुरिएण तत्थ जाएप्पिणु भो रिसि किं पइँ सुय अम्हारिय मुणिणा भणिउ न होइ तुहारी एम भणेप्पिणु पुणु हक्कारिय भणिउ अग्गिभूई रे बंभण जाहि जाम अम्हेहिँ सनायो आयन्नेवि एउ तहिँ होतउ । गउ जहिँ अच्छइ राउ बइट्ठउ
प्रावहँ सो नग्गउ जूरेप्पिणु । वेयारइ वेयत्थविहूणउ । भासिउ तेण दूरि थाएप्पिणु । देप्पिणु नियवयाइँ वेयारिय । बंभण एह धीय महु केरी। आगय नायसिरी वइसारिय । दुज्जण दुम्मइ नायनिसुंभण । खलियारियहिँ कहेवि न रायो । अब्बभन्नु अणाउ भणंतउ । प्रक्खिउ खवणएहिँ हउँ मुट्ठउ । १०
१ अवभंतु।
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