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( ४० ) पर मूर्खता के कारण राजा द्वारा निष्कासित । माता सहित जीर्ण गृह में निवास । घुड़दौड़ के मैदान में वसुमित्र उत्तम घोड़े के समान दौड़ना सीखकर राजा के पास गया।
१०८ ५. वसुमित्र राजा का परिचारक । दुष्ट अश्व द्वारा राजा का अपहरण । भीषण
वन में एकमात्र वसुमित्र राजा के साथ । सरोवर में राजा की अश्व से मुक्ति वसुमित्र द्वारा राजा की स्नान भोजन व्यवस्था । लौटने पर राजा द्वारा हाथ कंकण का पारितोषिक ।
१०६ ६. कंकण बेचते हुए वसुमित्र का राजपुरुष द्वारा पकड़ा जाना । राजा का वरदान ।
माता द्वारा चोल्लक भोजन की मांग । ७. अपने रसोईघर में भोजन कराकर अपने राज्य के समस्त नगरों, ग्रामों आदि के प्रत्येक घर में उनके भोजन की व्यवस्था ।
११० चक्रवर्ती की महाविभूति । सबके घर भोजन करके जिस प्रकार पुनः चक्रवर्ती के रसोईघर में भोजन की बारी पाना नितान्त दुर्लभ है, उसी प्रकार पुनः नरजन्म दुर्लभ । अतएव प्राप्त हुए मनुष्य जन्म को धर्म में लगाने का उपदेश । १११ नर जन्म की दुर्लभता का दूसरा दृष्टान्त-पाशक । मगध देश, शतद्धारपुर नगर, शतद्वार नृप द्वारा मणिमय तोरणों से युक्त सौ द्वारों का निर्माण, एक एक द्वार में ग्यारह सौ स्तंभ, एक एक स्तंभ में छयानवे कोने, एक एक कोने में एक एक जुवाड़ियों का अड्डा । द्विज की मांग कि यदि समस्त जुवाड़ियों का कभी एक सा दाव पड़ जाय तो उस दाव का सब द्रव्य उसे दिया जाय । एक बार ऐसा ही हुअा। इसी प्रकार मनुष्य जन्म दुर्लभ । नरजन्म को दुर्लभता का तीसरा दृष्टांत-धान्य का। जंबूद्वीप को एक पल्य बनाकर नाना धान्यों से उसे भरा और एक देव ने एक एक वर्ष में एक एक कण निकाला और सब धान्य कभी समाप्त हो गया। ऐसा ही मनुष्य जन्म दुर्लभ । १११
अथवा अयोध्या नगर में प्रजापाल राजा के कोषागार में समस्त प्रजा का धान्य सुरक्षा के लिये संचित किया गया। संकट निकल जाने पर अपने अपने धान्य की मांग । उसे छांटना जैसा दुर्लभ, वैसा ही मनुष्य जन्म।
११२ नरजन्म की दुर्लभता का चौथा दृष्टान्त-द्यूत । शतद्वारपुरी के प्रत्येक द्वार पर पांच सौ खल व प्रत्येक खल में पांच पांच सौ द्यूतकार। एक धनी द्यूतकार को धन दे देकर द्यूत खिलवाना। एक दिन समस्त जुवाड़ियों का समस्त धन, कत्ता व कवड्डा लेकर इधर उधर भाग जाना व सब वस्तुप्रों को बेच खाना । उन वस्तुमों का पुनः मेल जितना दुर्लभ, उससे अधिक दुर्लभ नरजन्म । अथवा उक्त नगर में निर्लक्षण नामक जुधाड़ी। वह द्यूत खेलता सदैव, किन्तु जीतता कभी नहीं। एक बार उसने सब जुवाड़ियों के कत्ता कवड्डा सक जीतकर नाना देशों से आये दीन दुखियों को बाँट दिये और वे अपने अपने देशों को चले गये। अब जुवाड़ी धन देकर निर्लक्षण से अपने अपने कत्ता कवड्डा मांमने
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