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________________ ( ३६ ) 19 28 mm १०० १०१ १०. सुरधनु और गंगाधर की सेनाओं का संघर्ष । ११. युद्ध वर्णन । १२. सुरघनु की सेना का पलायन, किन्तु सिंहकेतु सेनापति द्वारा पुनः संघटन व शत्रु सैन्य का अपसरण १३. दोनों सेनापतियों का क्रमशः जय-पराजय । १४. सुरधनु के सेनापति द्वारा प्रमोघ शक्ति का प्रयोग । १५. गंगाधर का पराक्रम और सुरधनु को ललकार व विद्याधरों और भूगोचरों के बीच अयोग्य विवाह का आरोप । १६. सुरघनु द्वारा प्रत्युत्तर व उक्त विवाह का औचित्य उदाहरणों द्वारा प्रमाणित । १७. सुर धनु और गंगाधर का बराबरी का युद्ध । गंगाधर द्वारा सुरधनु का घात । किन्तु एक के दो सुरधनु होकर युद्ध करने लगे। १८. दो के मारे जाने पर चार व चार के आठ, सोलह, बत्तीस, चौंसठ आदि क्रम से अनन्त सुरधनु युद्धरत । गंगाधर द्वारा अमित-शक्ति नामक विद्या का प्रयोग, जिससे विक्रिया विनष्ट होकर एकमात्र सुरधनु शेष । हरिषेण का युद्ध में प्रवेश । १६. हरिषेण और गंगाधर के बीच युद्ध । हरिषेण द्वारा शत्रु के समस्त शस्त्रों का प्रतिभात। - २०. गंगाधर द्वारा प्रज्ञप्ति आदि विद्याओं को आव्हान । उनका चक्रवर्ती के विरुद्ध असामर्थ्य प्रकाशन । रोषपूर्वक गंगाधर द्वारा उनका निराकरण । २१. गंगाधर और हरिवेण का रथ त्याग कर शस्त्र-युद्ध व गंगाधर का शिरच्छेद । २२. हरिषेण का सम्मान व विद्याघरों द्वारा सेवा-स्वीकृति । मदनावलि का परिणय । अपनी नगरी में पुनरागमन । माता की प्रसन्नता व रथयात्रा। २३. हरिषेण का राज्याभिषेक, मंदिर-निर्माण, तप और स्वर्गवास । १०३ १०३ १०४ १०५ १०६ संधि-९ कडवक पृष्ठ १०७ १. सज्जन-स्वभाव पर विष्णु-प्राम्न कथा । भारतवर्ष, समुद्र के बीच द्वारवती नगरी, नेमिनाथ-अवतार, वासुदेव नरेन्द्र, इन्द्र की सभा में उत्तम पुरुष के गुणों संबंधी प्रश्न । परदोष उपगृहन व परगुण-विस्तार उत्तम पुरुष का लक्षण । २. इन्द्र द्वारा सत्पुरुष के गुणों का वर्णन व दृष्टान्त स्वरूप वासुदेव का उल्लेख । परीक्षा हेतु देव का व्याधि-नीडित व कीट-युक्त श्वान के रूप में वासदेव के मार्ग में प्रा पड़ना। ३. लोगों का उसे देखकर भागना। एक चाण्डाल का नाक भोंह सिकोड़ कर उसकी निन्दा करना। किन्तु विष्णु ने प्रार्त जीव के प्रति दुर्भाव का निवारण किया । देव उनकी स्तुति कर अपने घर गया। ४. मनुष्य जन्म की दुर्लभता संबंधी दश दृष्टान्त जिनमें प्रथम चोल्लक । साकेतपुरी, ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती, विद्वान् सहस्रभट का पुत्र वसुमित्र दुर्व्यसनी। पिता की मृत्यु १०७ १०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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