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________________ ४५. ७. ५ ] कहकोसु [ ४५१ ५ जेठे लहुउ वुत्तु किं मूढउ अच्छहि गव्वगइंदारूढउ । पणमहि किं न पावखयगारउ भयवं सामिसालु अम्हारउ । एयहो पायपसाएँ भाइय एह विहूइ अम्ह संजाइय ।। तेण पउत्तु वुत्तु पइँ चंगउ पर दियजाइह एउ अजोग्गउ । जं असुइह खवणयहे नविज्जइ अक्कमेण कुलकमु मइलिज्जइ। एउ सुणेप्पिणु तं गरहेप्पिणु वइराइं घराउ निग्गेप्पिणु । अद्दि दयावउ नामें गंपिणु सुज्जमित्तमुणिपय पणवेप्पिणु । विहियकसायपरीसहरिउजउ अग्गिभूइ संजायउ संजउ । घत्ता-निसुणेप्पिणु तववत्तु दुहससिमउलावियमुहसयवत्तए । रूसिवि पवणभूइ भणिउ हुयवहभूइपियण ससियत्त ।।५।। १० तुहुँ निक्किठ्ठ दु? गरुयारउ अवरु विसेसें ताउ तुहारउ । सुज्जमित्त जगपुज्जु भडारउ निग्गुणु दुज्जणु दुक्कियगारउ । पडु पंडिउ जणम्मि विक्खायउ अस्स पसाएँ तुहुँ संजायउ । जइ एवहिँ हयास नउ वंदहि तो पच्चेल्लिउ निठुरु' निंदहि । तुज्झु अणिढें तउ भत्तारें लइउं विमुक्कमोयवित्थारें। एउ सुणेवि तेण सकसाएँ ताडिय भाइभज्ज सिरि पाएँ। नीसारिय' घराउ नग्गउ थिउ भणिय जाहि जहिँ अच्छइ तुह पिउ । वुत्तु ताण मइँ पाउ तुहारउ अन्नभवंतरि विप्पियगारउ । कडयड त्ति दंतहिँ चावेवउ चूरिवि अट्ठिाइँ खावेवउ । घत्ता--थिय संसारि भमंति चिरु सा मुय एम नियाणु करेप्पिणु । . १० मरुभूइ वि मुणिनिंदणेण मुउ मूढउ कोढेण कुहेप्पिणु ॥६॥ वच्छाजणवण कोसंबीपुरि मुणिनिंदाफलेण इंखयधरि । जायउ खरि पुणु गड्डासूयरि पुणु चंपहे पाणहो घरि कुक्कुरि । पुणु तासु वि सुय हुय जाइंभरि अंधलिया कुरूव लंबोयरि । पिप्पलाइँ भक्खंती भुक्खिय सिहिभूई पेक्खेप्पिणु दुक्खिय । भासिउ भव भमंतु पेच्छह जिउ एहावत्थए वि जीवियपिउ । १ निद्धरु। २ लइ विमुक्क। ३ नीसारिउ। ४ मरुभूए । ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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