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४४. १६. २०
लोहेण न किंपि मणुउ मुणइ सागाइ तेहिँ पावेहिँ हिया विलवंत वणाउ समागएहिँ कहो केण हयासें हउ जणणु ता कहिय सेस वि तात विही जणणी समप्पिय पहयखला सियरामु समाइरोसभरिउ सकुडुंब सपरियण वे वि हया
कहको
संडिलासमं गयाप्र
तं निएवि सव्वगुत्त
सव्वभूमु एस बालु ता सुभूमु मायग्र भावकवट्टिते पालि किन समत्थु एत वि एक्कवीस
मारिऊण कुद्धएण जामग्गणा असेस पुच्छि निमित्ति सच्च
तेण वुत्तु चारु दंत जेण दिट्ठ होंति भत्तु अंतयारि रायराउ
तं सुणेवि दाणसाल तत्थ वंजणेहिँ चारु दाविऊण दंतपत्तु
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सुहि सुण सामि तवसि वि हणइ । जमयग्गि देतु विहणिवि निया । परिपुच्छिय मायरि अंग एहिँ । को अज्जु निरुत्तउ मरणमणु प्रायन्निवि दुज्जणगहणसिही । सा परसुविज्जपमेयबला | प्रणुमग्गे ताहँ लग्गु तुरिउ । ते बप्पपुत्त पायालि गया ।
घत्ता -- एउ वियाणिवि लोहतरु वड्डिउ वित्थारें । छिन्नह दुग्गइदुक्खफलु संतोसकुढारें ।। १८ ।।
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गाहा— कत्तविरियस्स भज्जा गुरुगब्भभरालसा भयक्कंता । पोमावइ नामेणं नासिवि वणं गया सुयणु ॥
जाउ पुत्तु तत्थ ता । भास मुणी तिगुत्तु । होस विवक्खकालु । कोक्को किसोयरी | जाणिऊण तावसेण । सिक्खिम्रो ससत्थु सत्थु । वार संग महीस | माणिणा कुलद्धएण । दिन बंभणाण देस । कासु पासि मज्भु मच्चु । वित्त भायणे फुरंत । सो मही तुज्झ सत्तु ।
होस महापहाउ | राइणा कया विसाल । तप्पक्खिहेउ फारु । दिज्जए दियाण भत्तु ।
घत्ता - एण विहाणें जाम तहिँ
रेणुयसुउ अच्छइ । एत ताम सुभूमु वर्ण नियमायरि पुच्छइ ॥१९॥
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