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________________ ४४. ८. २ ], घल्ला विउ रेल्लाविउ वियणे गउ जरकुमारु छड्डेवि पुरी छुरिय विघसेवि घल्लिय विउले सो धरिउ सफरु गलघित्तकमु तं तेण कुमारें पावियउ तहिँ होंत दीवाणु सवणु बारहवरिसेहिँ संघसहिउ गिरिणयरिसमीवि भमियहरिहे सासय सिरिगहणुक्कंठियउ Jain Education International कहको निसुणेपिणु मुणि संतावियउ पर तो विन केम वि उवसमिउ हे ते तिसय भमेवि वणू मत्ता पिवेवि प्रणिबद्धरया दीवायणो वि कोवेण मुत्रो परियाणिवि वइयरु एवि तिणा सुहिसयणविप्रोय सोय भरिया गय दुम्मण दणुरिकुंभिहरी गउ सलिलु पलोयहुँ सीरधरु तहिँ जरकुमारु विहिणाणियउ कयमणिमयकंबल पावरण मुउ कालहो कोवि नत्थि सयणु घत्ता -- एत्थंतरि जायव सयल संदरिसियलीला | अणिवारियपयावपसर गय तहिँ वणकील ||६|| ७ संखो जाउ जायवहँ मणे । थिउ वणि यासंधिवि विज्झगिरी । मीण गिलिय मयरहरजले । तो उयरि खंड तो भल्लिसमु । किउ कंडु सरग लावियउ । गउ पुव्वसु तवतत्ततणु । प्राय मुणंतु मासु हिउ । एप्पिणु थिउ उंटगीवगिरिहे । प्रावि सो जो परिट्टियउ । घत्ता—बलु सोएँ केसवहो सवु छम्मास वहंतउ । संबोहिउ देवेण जइ जायउ उवसंतउ ॥ ७ ॥ [ ४४१ गाहा -दक्खिणदेसे तुंगीपव्वयसिहरम्मि रइयसन्नासो । काऊण तवं तिव्वं उववन्नो बंभलोयम्मि || 1 उवलेहिँ पूरिदो पुणु ५ गाहा—कीलावसेहिँ सुइरं खम्भालिउ तहिँ निएवि सो साहू संबुकुमारेण सव्वंगो || हरिणा गंतूण खमावियउ । अच्चंतकोवभावें दुमिउ । सात सुरा मनेवि यणु । अन्ननु विजुज्झिवि खयहो गया । भावणसुरु श्रग्गिकुमारु हुन । वारमइ पजालिय दुम्मइणा । बलवासुएव पर उब्वरिया । परिसमिउ सुत्तु तरुमूलि हरी । एत्त जहिँ अच्छइ चक्कहरु | तें जीउ उ वियाणियउ । विद्धउ प्र भल्लिए ललियतणु । कि होइ सच्चर जिणवयणु । For Private & Personal Use Only ५ १० १५ १० १५ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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