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________________ ४४. ४. ७ ] , कहकोसु [ ४३६ अप्पणु बहिणिह उवएसु किउ पच्छन्नु होवि आसन्नु थिउ ।। एत्थंतरि तहि गोवालु गउ सिरिकुमरु वियप्पिवि खुंटु हउ । ता पच्छावेवि करेवि छलु विणिवाइउ सल्लें तेण खलु । १० घरु आइउ पुच्छिउ मायरिए विसभरियर नं काप्रोयरिए । मइँ तुज्झ गवेसउँ पेसियउ कहिँ गोवउ सो गुणभूसियउ । तेणुत्तु न जाणमि माइ सइ ग्रह सेल्लु वियाणइ तासु गइ । घत्ता-लोहियलित्तउ तं निवि रुवाण बइठ्ठउ । मुसलपहारेणाहणिवि किउ सो निच्चेट्ठउ ।।२॥ १५ गाहा-तेण जि मुसलेण हया सा सिरिसेणा भाइदुक्खेण । पहरभरवियणवियला विमुक्कपाणा गदा निरयं ।। निठुर कोहाइकसाय सढा सासयपुरपवलिकवाड दिढा । चउगइभवकाणणि पहयपरा न कसाय मुएवि चोर अवरा । सिवपट्टणपंथें जंतु जणू ल्हूसंति अणोवमु धम्मधणू । ५ जइ छिदह जाइजरामरणू तो करइ कसायहँ परिहरण ।। दरिसावियदुग्गइदुक्खदरी जीवहीं कसाय नउ अन्न अरी । हा के ण कसायवसेण हया जिणधम्मु वि पाविवि कुगइ गया। दीवायणु नामें आसि जई कोहेण डहेप्पिणु वारमई । काऊण पाउ संजमहो खउ मुउ दुम्मई दुग्गइह गउ। १० पत्ता-इह सोरटुविस विसम धणधन्नसमिद्धी । मज्झि समुद्दहो वारमइ पुरि अत्थि पसिद्धी ।।३॥ गाहा-बारहजोयणदीहा नवजोयणवित्थरेण सोहिल्ला । सोलहगोउरदारा चउवीसखडक्कियासहिया ।। मणिकुट्टिमभूमियला मणिमयपासाय रयणपायारा । निरुवमसोहाण सया सग्गं पि हु जा विसेसेइ । जहिँ दस दसार पंडव पयडा निवसहिँ अणेय अवर वि सुहडा। ५ तहिँ वासुएउ वसुएवसुनो। नवम उ नारायणु पीणभुप्रो । मयणहो जणेरु रुप्पिणिहे वरु चक्केसरु ईसरु पहयपरु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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