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४१. १८. १२ ]. कहको
[ ४०७ भणइ साहु किं कारणु लद्ध न कन्न पई कहिउ तेण सो मग्गइ कंचणपडिम मई । नत्थि कत्थ पाविज्जइ सा हउँ निद्धणउता देवरिसि पयंपइ चिरभवि तहो तणउ। देमि हेमपडिमा हउँ परिणहि मलहरणु बारह वरिसहिँ गेण्हहि जइ तुहुँ तवयरणु १०
घत्ता-मेदज्जेण भणिउ करमि पाइक्कु तुहारउ ।
एक्क वार परिपूरवहि अहिमाणु महारउ ॥१६॥
ता भणिउ मुणिदें जाहि घरु ।
सम्मज्जिवि देवि चउक्कु वरु । तो उवरि वत्थि वित्थरिण सिए जिणदेवहो जयजयकारि किए। आवेसइ पडिम नहंगणहो
आणंदु जणेसइ तुह मणहो । निसुणेवि एउ सो तुट्ठमणु
मुणि वंदिवि संप्राइउ भवणु । पुव्वुत्त पयत्ते किरिय किया
एंतूण पडिम वत्थुवरि थिया । घरु नेविण तेण तासु कहिया
. लइ एह देहि महु नियदुहिया । देमि त्ति भणेप्पिणु लेवि थिउ
अवरुत्तरु पिसुणे तेण किउ । भवणम्मि महारइ खीरुवहि
जइ आणहि तो तणया लहहि । सोऊण इणं दूमियमइणा
गंतूण कहिउ धणसिरिहे तिणा। घत्ता-"
.....किं चि वि न नियच्छइ। निच्छउ सो सुय सत्तु तुह कि कन्न पयच्छइ ।।१७।।
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भासइ सो न कज्जु महु अन्नप
विज्जाहरित रइ सुरकन्न । जीवमि लइ सा लहमि किसोयरि नं तो जामि जमालउ मायरि । एम भणेप्पिणु पिउवणु गंपिणु
मरणत्थिउ तरु गरुउ चडेप्पिणु । घल्लइ झंप जाम ता सुरवइ
पुणरवि आयउ सो होइवि जइ । विणिवारिउ दुग्गइहे म पइसहि
कि अप्पउँ अन्नाण विणासहि । ५ मेंदज्जेण भणिउ मुणि जा पइँ
दिन्न पडिम ढोइय सा तहाँ मइँ। तो वि न दुज्जणु दुहिय समप्पइ
आणहि खीरसमुदु पयंपइ । सो कहिँ लब्भइ तेण निरुत्तउ
मरमि भडारा ता तेणुत्तउ । जइ परिणेवि कन्न पावज्जहि
विसयकसाय महाभड भंजहि । तो चिंतामणि चिंतियदायउ
दुल्लहु देमि तुझ विक्खायउ। १० घत्ता-ता सो भासइ देहि पहु परिणेवि मुएसमि ।
कंकणहत्थु जि पासे तुह पव्वज्ज लएसमि ।।१८॥
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