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________________ संधि ४१ धुवयं-वित्तनिमित्तु मरेवि दुहु पार्ववि लल्लक्को । वणि पिन्नागगंधु गयउ नरयहो लल्लक्कहो ।। पंचालविसा कंपल्लिपुरे रयणप्पहु पहु वणरमियसुरे । महएवि तासु वर विज्जुपहा . जणमणहर नावइ सुकइकहा। जिणयत्तु जिणिदधर्म निरउ निवसेट्टि पसिद्ध विहूयरउ । अवरु वि तहँ वसइ धणाहिवइ पिन्नागगंधु वणि दीणमइ । रक्खइ धणु न नियच्छइ नियइ सो पिन्नयविक्कएण जियइ । तो विण्हुदत्तु नामेण सुउ मंदिरिनामाहे पियाहे हुउ । आसन्नु जि कोऊहलमइणा पारधु तलाउ महीवइणा । सयसहससंखकुद्दालकरा कम्मति निरंतरु तत्थ णरा। मढियउ लोहेण कुसीण सउ पाविउ एक्केण सुवन्नमउ । विक्किणिय एक्क वट्टिय खइया अमुणंतें जिणदत्ते लइया । जा जोयइ ता सा कंचणहो काराविय पडिम चारु जिणहो । घत्ता-वट्टउ उड्डु लेवि अवरु कंचणु अमुणंतउ । अन्नहिँ दियहे पुणाइयउ लइ सेट्ठि भणंतउ ॥१॥ १० जाणिवि अभब्बु धणु वणिवइणा पिन्नागगंधु जहिँ तहिँ खणउ पुणु भणिउ उड्डु रे जेत्तियउ देज्जसु देमि त्ति भणेवि घरु अणुवासरु सो कयवंचणहो एक्के विक्रय दो दो देइ तहो नवनवइ दिन्न एक्कण रहिया एत्थंतरि विणयविहूसियउ तुह भच्चियाहे परिणयणविही सो पइँ विणु केम भाय हवई परिहरिउ न लइउ चारुमइणा । गउ लइय तेण बुज्झिवि कणउ । अच्छंति कुसिउ महु तेत्तियउ । गउ लेवि मोल्लु कोद्दालकरु । आणेप्पिणु कुसि वरकंचणहो। ५ अह वा धणलुद्धहो तित्ति कहो।। एक्कच्छइ तासु तेण कहिया । बहिणि हक्कारउ पेसियउ । इह होइ लग्गु संजणियदिही । इय जाणिवि प्रावहि सिग्घगई। १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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