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________________ ३८८ ] सिरिचंदविरइयउ [ ३६. १६. ३इय चितवि धरइ न धरइ जाम गय नासेवि सा सहसत्ति ताम । गइयाण ताण पत्तावमाणु हा देवि तिलोत्तिमि जंपमाणु । मुच्छेवि धरहि निवडिउ टस त्ति गय ताम तिलोत्तिम नियय थत्ति । ५ कमलासणासु तवचरणे भग्गे किउ बद्धावणउ सुरेहिँ सग्गे। संजाया सयल वि सुहियचित्त इंदेण तिलोत्तम पुणु पउत्त । किं करइ न मुणहुँ विलक्खिहूउ किं जियइ मरइ विरहाहिहूउ । साहारहे जाइवि बंभु भद्दे तहो होहि कन्न कलयंठिसद्दे । सा तं न समिच्छइ लोयमहिय ता सुरवरेहिँ उव्वसिय पहिय । १० सहुँ ताण रमंतो तासु पुत्तु उप्पन्नु वसिठ्ठ गुणेहिँ जुत्तु । उक्त च-उर्वशी ब्रह्मणो भार्या वेश्या विख्यातसुन्दरी । तस्याः पुत्रो वसिष्ठाख्यो वेदे विप्रगणेडितः ॥ इय जाणिऊण निहणह अणंगु परिहरह असुंदरु नारिसंगु । धत्ता-बंभु वि जहिँ भज्जइ लज्जहि वज्जइ सिरिचंदुज्जलु गुणनिलउ । १५ तहिँ मयणवसंगहो कयतियसंगहो अन्नहो कि न होइ पलउ ।।१६।। विविहरसविसाले णेयकोऊहलाले। ललियवयणमाले अत्थसंदोहसाले ।। भुवणविदिदनामे सव्वदोसोवसामे। इह खलु कहकोसे सुंदरे दिन्नतोसे ।। मुणिसिरिचंदपउत्ते सुविचित्ते णंतपयदसंजुत्ते । एउणचालीसमो बंभकहाए इमो संधी ।। ॥ संधि ३९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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