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________________ सन्धि -५ कडवक Xx K ५३ १. श्रद्धान आदि के फल की कथा । हस्तिनापुर के राजा धनपाल व सेठ जिनदास । राजा के शरीर में व्याधि । सेठ ने आकर खबर दी कि एक महामुनि आये हैं, जिनके चरणोदक से लोगों के दुःख दूर होते हैं । २. मुनि के चरणोदक से व्याधि का तथा उपदेश से मानसिक दोषों का अपहरण, धर्म-रसायन का फल जन्म-जरा-मरण से मुक्ति । ३. आत्म-निन्दा का आख्यान बुद्धिमती कथा । वाराणसी पुरी, राजा विशाखदत्त । गौड नरेश पर पाक्रमण और विजय । वहां के प्रासाद का चित्र अपने नव-निर्मित चित्तविभकर प्रासाद में लिखाने की आकांक्षा। चित्रकारों का असमर्थता । ४. उज्जैनी से एक सुयोग्य चित्रकार का प्रागमन व जिन मन्दिर में उपदेश करते हुए श्रीचन्द्र मुनि के चित्र का लेखन । ५. उस चित्र की महिमा सुनकर राजा का आगमन व चित्रकार का राज प्रासाद में प्रवेश । ६. चित्रकार द्वारा चित्र-लेखन । चित्रकार की कन्या बुद्धिमती द्वारा मयूरपंख का चित्रण । राजा का आगमन । . ७. बुद्धिमती की चतुराई देख राजा ने उसे अपनी महादेवी बनाया । ८. अन्य रानियों द्वारा बुद्धिकती की अवज्ञा तथा बुद्धिमती की आत्मनिन्दा । ६. राजा द्वारा बुद्धिमती की स्तुति व अन्य रानियों को दण्ड । १०. बुद्धिमती का दुश्चरित्र व राजा का घात । श्मशान में त्याग व देवता द्वारा स्तंभन । ११. देवता के उपदेश से बुद्धिमती द्वारा अपने पाप की घोषणा । १२. आलोचना का आख्यान । बरेंदी देश, देवीकोट्ट पट्टन, सोमदत्त द्विज, सौमिल्ला पत्नी, अग्निभूति पुत्र । उसी नगर में हरिदत्त विप्र, हरिदत्ता पत्नी । सोमदत्त उन्ही के आश्रित । सोमदत्त का मुनिव्रत धारण । विहार करते हुए उसी नगर में आने पर हरिदत्त द्वारा ऋण-शोध की मांग व सोमदत्त द्वारा पुत्रों की मोर निर्देश । १३. हरिदत्त और सोमदत्त का विवाद व ऋण-शोध के लिये धर्मधन को बेचने का प्रस्ताव । गुरु वीरभद्र द्वारा इसी का अनुमोदन । रात्रि में श्मशान में जाकर सोमदत्त द्वारा उद्घोषणा। इंद्र, अग्नि यम आदि देवताओं से धर्म खरीदने का प्रस्ताव । वन देवता के पूछने पर अट्ठाइस मूल गुणों का निर्देश । १५. धर्म की प्रशंसा व दशविघ धर्मों का निर्देश तथा मूल्यांकन । १६. वनदेवी द्वारा धर्म का मूल्य असंख्य रत्नादि प्रस्तुत । सोमदत्त द्वारा वह धन हरिदत्त को समर्पित । हरिदत्त का वैराग्य एवं दीक्षा-ग्रहण । १७. ज्ञान-साधना में काल आदि अष्ट प्रकार के विनय का निर्देश । कालविनय का आख्यान । वीरभद्र मुनि का निर्जन वन की गुफा में रात्रि में अकाल शास्त्र ५६ १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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