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________________ ( ३२ ) ८. मुनि का धर्मोपदेश । सोमदत्त को वैराग्य । फल घर भेजकर उसका दीक्षा लेना । प्रसव के पश्चात् पत्नी का अपने भ्राता के साथ उसके पास प्राना व पुत्र को उसके पागे फेंक कर रोष से घर लौटना। सूर्यदेव विद्याधर का आगमन, पुत्र-ग्रहण व वज्रदेव नामकरण । पुत्र को विद्या एवं यौवन प्राप्ति । १०. कुमार का ह्रीमन्त पर्वत पर क्रीड़ार्थ गमन और वहां अलकापुरी के राजा पवन वेग की पुत्री मदनवेगा से भेंट । मदनवेगा की प्रांख में कांटा चुभ जाने से प्रज्ञप्ति विद्या की सिद्धि में विघ्न । कुमार ने वह कांटा निकाल कर उसे विद्या की सिद्धि करा दी। ११. कन्या द्वारा वरदान । सात दिन के लिये प्रज्ञप्ति विद्या की मांग । विद्या पाकर कुमार द्वारा अमरावती जाकर अपने पिता के शत्रु अपने चाचा को जीतकर अपने पिता को राजा बनाना व ख्याति प्राप्त करना । १२. मदनवेगा प्रादि द्वारा वज्रकुमार का अपहरण व पांचवें दिन पांच सौ विद्या धरियों को विवाह कर पुनरागमन । सूर्यदेव को पुत्रोत्पत्ति । उस पुत्र द्वारा वज्रकुमार का उपहास व सूर्यदेव द्वारा यथार्थ कथन । १३. वज्रकुमार ने उत्तर मथुरा की क्षान्तिगुफा में जाकर सोमदत्त की वन्दना करके दीक्षा ग्रहण की। वहां के राजा पृथ्वीमुख और रानी प्रोविला । वहाँ के सेठ सागरदत्त और सेठानी सागरदत्ता । सेठ की मृत्यु व सेठानी का दारिद्रय । उनकी पुत्री को मार्ग में उच्छिष्ट खाते हुए दो मुनियों ने देखा। उसके लक्षण देखकर उसके रानी होने की भविष्यवाणी। १५. उक्त कन्या के पूर्व-जन्म की कथा । मनि के गले में मत सर्प डालने से नाना कुयोनियों में जन्म । ब्रत धारण । शेष पार के कारण दारिद्रय । पापक्षय होने पर नरेन्द्र-पत्नी। यह भविष्यवाणी सुनकर बुद्धधर्म भिक्षु द्वारा उसकी माता से मिलकर उसे ले जाना व विहार में उसका संवर्धन । राजा का उस पर मोहित होना। ___ मंत्री द्वारा राजा को सन्तुष्ट करने का प्रयत्न । बौद्धधर्म स्वीकार करने की शपथ पर उक्त कन्या से विवाह । १८. नन्दीश्वर पर्व पर बौद्ध रथ पहले चलाने की प्रार्थना । प्रोविला रानी द्वारा मुनि सोमदत्त से जैनधर्म की प्रभावना की प्रार्थना व मुनि द्वारा वज्रकुमार को आदेश । १६. सूर्यदेव विद्याधर की सहायता, राजा की सैन्य का स्तम्भन व बौद्ध रथ का विनाश । २०. जैन रथ का महोत्सव के साथ परिभ्रमण व धर्म-प्रभावना । २१. वज्रकुमार का निर्वाण । कथा का माहात्म्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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