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३५४ ] सिरिचंदविरइयउ
[ ३५. ६. ३चारुदत्तो नाम्ना वणिकपुत्रो जादो अभूत् हु स्फुटम् । किं जातः ? गणिकासक्तो वेश्याया लग्नः मद्येनासक्तो भवेत् कुलनासओ गोत्रविनाशकश्च । तथा तेनैव क्रमेण । केन ? गोष्ठीदोषेण दुष्टसंसर्गदोषेण । अत्र चारुदत्ताख्यानम् । चंपापुरि वणिकुलगयणभाणु
नामेण पसिद्धउ अत्थि भाणु । करिरायगमण कलयंठिसद्द
सुहयारिणि गेहिणि तो सुहद्द । जं चिंतइ तं घरि सव्वु अत्थि
पर एत्तिउ जं तहो पुत्तु नत्थि । तं नत्थि जं न पीणत्थणीय
किउ तत्थ ताण पुत्तत्थिणी । पर तो वि नाहिँ संजाउ पुत्तु
एक्कहिँ दिणि जिणहरि माणजुत्तु । १० प्रायासगामि मुणि एक्कु दिठ्ठ
पणवेप्पिणु पुच्छिउ परमनिट्ठ । कि अस्थि नत्थि तउ मज्झ साहु
आहासइ मयणमयंकराहु। सुणु सावित पाविवि परमपुत्तु
वुड्डत्तणि लेसहि तउ निरुत्तु । मुणिवयणाणंदियमाणसाहे
हुउ कइवयदिवसहिँ गब्भु ताहे । नवमासहिँ गयहिँ सदोहलेहँ
उप्पन्नु पुत्तु सहुँ सोहलेहिँ। १५ घत्ता-चारु भणेप्पिणु चारणमुणिणा एसियउ ।
चारुदत्तु सद्दिउ सुउ सुयणपसंसियउ ।।९।।
हुउ कालें सयलकलापवीणु
सुंदरमइ रूवें नं रईणु । हरिकेउ हलाउहु चारुचित्तु
मरुभूइ चउत्थउ तस्स मित्तु ।। एक्कहिँ दिणि मणिमालिणिसरीहे
गउ कीलहुँ ससुहि मणोहरीहे । तहिँ उववणि केलीहरि कणंतु
सहुँ रुक्खें खीलियसयलगत्तु । विज्जाहरु दिठ्ठ वियक्खणेण
बोल्लाविउ हा किउ एउ केण । ५ तेण वि अब्भत्थिउ एहि मित्त
फेडहि प्रयखीलय करि परित्त । तिन्नि वि एयाउ महोसहीउ
वर्ण वट्टिवि लायहि कयदिहीउ । । । तं वयणु तेण करुणाधरेण
किउ हुउ सुहि खेयरु तक्खणेण । घत्ता--करि करवालु करेप्पिणु गयणि पधाइयउ ।
मेलावेप्पिणु निय पिय तुरिउ पराइयउ ॥१०॥ १०
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विज्जाहरु बोल्लइ चारुचित्तु दाहिणसेढीहे मणोहरम्मि तो तणउ भणउ हउँ अमियवेउ
आयन्नहि वइयरु कहमि मित्त । ग्रहु खेयरु कयसिउ सिवपुरम्मि । धूमसिहगोरमुंडहिँ समेउ ।
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