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________________ संधि ३५ अोघेण न वूढामो जलंतघोरग्गिणा न दड्डाप्रो । सप्पेहिँ सावएहिँ य परिहरिदारो वि कानो वि ॥ [भा. प्रा. ९९८] ओघेण जलप्रवाहेण न बूढाओ न नीता। जलंतघोरग्गिणा जाज्वल्यमानेन रौद्राग्निना न दग्धाः । सप्पेहि वि सरपि सावएहि य सिंहव्याघ्रादिभिरपि परिहरिदाओ विवजिता अपि काश्चित् स्त्रियः । अत्राख्यानम् । धुवयं-इय कहियाउ विरूवउ संपइ चंगियउ । आहासमि महिलाउ पसंसहो जोग्गियउ ।। सूरसेणजणवण सउरीउरि पहु वसुएउ सक्कु नं सुरउरि । तहो महएवि महासइ रोहिणि नं कामहो रइ चंदही रोहिणि । पुत्तु पवित्तु ताण संजायउ नामें रोहिणेउ विक्खायउ । १० सो अहनिसु पासट्ठिउ मायह भत्ति पयासइ पहयपमायहे । अइसासग्गु निएप्पिणु नंदणु घरि घरि खलसहाउ जंपइ जणु । . हा पेच्छह परलोय विरोहिणि' अच्छइ सहुँ बलहदें रोहिणि । तेणायमि अइमेलु निवारिउ आए दुज्जसु होइ अवारिउ । लेप्पिणु गोरसु गोवयपत्तिण एक्कहिँ वासरि राउलु एंतिए। १५ घत्ता-पुरपवेसि पणिहारिउ सूणिउ भणंतियउ । हले अम्हारण पट्टणि पाउ पवत्तियउ ॥१॥ पेच्छह अमुणियजुत्ताउत्ती सुणिवि एउ दुहमउलियवत्ती किं रोवहि हलि पुच्छिय देविण रोवमि देवि दुक्खु बड्डारउ अच्छहि तुहुँ पुत्तें सहुँ जंपइ १. १ परिलोय अच्छइ रोहिणि पुत्तहो रत्ती । गय राउलु गोउलिणि रुयंती । गग्गिरगिरइँ कहिज्जइ गोविण । फुट्टइँ लग्गउ हियउ महारउ । लोउ हयासु न कि पि वियप्पइ। ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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