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________________ ३४८ ] सिरिचंदविरइयउ [३४. १४. ५कयपडिवत्तिण भोयणकालय आणिवि तं तो घल्लिउ थालए। ५ माणुससिर निएवि मुहु वंकिउ । उटिउ आसणाउ प्रासंकिउ । लइ वल्लहिय खाहि कहिँ नासहि __ अज्जु यास जमाणणि पइसहि । एम भणिवि भल्लेण वियारिउ पाविणी नियपइ संघारिउ । घत्ता-लाप्रवि आलु खलाण वणिसुउ नामें दत्तउ। नियवरु वीरवईए मारावहुँ प्राढत्तउ ।।१४।। रायगेहि वणियहाँ धणमित्तहो हुउ धणवइह गर्भ धणइत्तहो । नंदणु मायबप्पपयभत्तउ नामें सुयणु भणिज्जइ दत्तउ । नयरासन्नगामि भूमीहरि निवसइ वणि आणंदु मणोहरि । तेण वि मित्तमइहे उप्पन्नी वीरवई सुय दत्तहो दिन्नी। पडइ न सहुँ पिएण सा सुरयहो जाइ समत्थ वि ण वि सासुरयहो। ५ तत्थंगारयचोरहो रत्ती अच्छइ अहनिसु मयणुम्मत्ती । एक्कहिँ दिणि पत्तउ चोरंतउ अंगारउ सूलियहं निहित्तउ । एत्तहिँ ससुरयघरु अणुराइउ वीरमइहे भत्तारु पराइउ । दुम्मियमाणस वत्त सुणेप्पिणु थोव वेल सहुँ तेण सुएप्पिणु । जाणिवि सुत्तु कंतु एक्कल्लिय सा तक्करहो पासु संचल्लिय । - १० घत्ता--दत्तहो मित्तु सुसेणु तहो अणुमग्गें गंपिणु । चोरसमीवि मसार्ण थिउ पच्छन्नु हवेप्पिणु ॥१५॥ वीरमइन आसन्नण होइवि चोरु गरुयपीडाण करालिउ पुच्छिउ किं किज्जउ सो भासइ सीयल हियण पोहर लायहि ता तण उवलुत्तुरुडि करेप्पिण मुहु मुहेण तंबोलु समप्पिउ विहडिय पाहण पडिय खसेप्पिण आवेप्पिणु घरु किउ कूवारउ विणु कज्जेण जि एण यासें संभासेवि सदुक्खउ रोइवि । समलहेवि कुसुमहिँ अोमालिउ। तिह करि जिह पिy डाहु पणासइ । मणहरु अहरपाणु परिपायहि । आलिंगिउ दिढु उवरि चडेप्पिणु । ५ तेण वि उठ्ठ मरतें चप्पिउ । थिउ तहि मुहि जि उठ्ठ तुट्टेप्पिणु । पेक्खह खंडिउ अहरु महारउ । ता वेढिउ घरु लोयसहासें। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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